बिहार रामनवमी के बाद दंगों की आग में जल रहा है। भाजपा और जेडीयू पर लगातार आरोप लग रहा है कि उनकी सरकार दंगों पर काबू पाने में नाकाम नज़र आ रही है। अब ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ ने अध्ययन पेश किया है कि भाजपा और जेडीयू के राज में बिहार में सांप्रदायिक हिंसा बढ़ी है।

2017 में बिहार में धार्मिक टकराव की 270 घटनाएं हुईं। ये पांच साल में सांप्रदायिक हिंसा का सबसे बड़ा वार्षिक आकड़ा है। गौरतलब है कि 2017 में आरजेडी के साथ गठबंधन तोड़कर नीतीश कुमार ने फिर से एनडीए में वापसी की थी।

भाजपा के साथ नीतीश कुमार की नई पारी के बाद राज्य में अब तक साम्प्रदायिक तानव की 200 घटनाएं हो चुकी हैं। साल 2018 के लगभग 90-91 दिन गुजर चुके हैं। इस साल के इन तीन महीनों में ही साम्प्रदायिक तनाव की 64 घटनाएं हो चुकी हैं।

बता दें, कि इन सांप्रदायिक घटनाओं में कई भाजपा नेताओं का नाम सामने आ चुका है। कई गिरफ्तार भी हो चुके हैं। यहाँ तक कि केन्द्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री अश्विनी चौबे के बेटे अर्जित चौबे भी रामनवमी के दौरान सांप्रदायिक भावनाएं भड़काने के आरोप में हिरासत में लिए गए हैं।

पिछले पांच साल के आंकड़ों की बात करें तो 2012 में 50 ऐसी घटनाएं हुई थीं। 2013 में ये आंकड़ा 112 था। 2014 में यह 110 रहा, 2015 में ये आंकड़ा बढ़कर 155 हो गया। 2016 में बिहार में साम्प्रदायिक तनाव की घटनाएं बढ़कर 230 हो गईं। जबकि 2017 में धार्मिक टकराव की 270 घटनाएं हुईं। ये आंकड़ा पांच साल में सबसे ज्यादा है।

इस साल अब तक धार्मिक टकराव के 64 मामले सामने आए हैं। अगर घटनाओं का मासिक विवरण निकालें तो जनवरी में 21, फरवरी में 13 और मार्च में 30 साम्प्रदायिक तनाव की घटनाएं पुलिस ने दर्ज की।

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