मोदी सरकार बनने के बाद लगातार शिक्षा व्यवस्था के साथ छेड़छाड़ की जा रही है। इतिहास को दक्षिणपंथी विचारधारा के मुताबिक बदला जा रहा है। पुराने तथ्यों को मिटाकर दक्षिणपंथ और उसके नेताओं की नई छवि गढ़ी जा रही है।
बता दें, कि सरकार ने संसद में जो जानकारी दी, उसके मुताबिक, 2002 के दंगों में 790 मुस्लिम जबकि 254 हिंदुओं की मौत हुई थी। 223 लोग लापता बताए गए, जबकि 2500 से ज्यादा लोग लापता थे।
एनसीईआरटी की 12वीं कक्षा में पढ़ाई जाने वाली पॉलिटिकल साइंस की किताब में 2002 में गुजरात में हुए दंगों को ‘मुस्लिम विरोधी दंगे’ के तौर पर पढ़ाया जाता रहा है। हालांकि, अब इसे बदलकर ‘गुजरात दंगे’ कर दिया गया है। ये बदलाव किताब के संशोधित संस्करण में किया गया है, जो इस हफ्ते बाजार में आने वाली है।
किताब के आखिरी पैराग्राफ में ‘Recent Developments in Indian Politics’ नाम के अध्याय में यह बदलाव किया गया है। अब पेज नंबर 187 पर दंगों से संबंधित जो पैराग्राफ छपा है, उसका शीर्षक ‘मुस्लिम विरोधी दंगे’ से बदलकर ‘गुजरात दंगे’ कर दिया गया है। हालांकि, खास बात यह है कि इसी पैराग्राफ में 1984 के सिख दंगों को सिख विरोधी करार दिया गया है।
गौरतलब है कि ये दंगे वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए थे। इसके बाद ही उनकी छवि मुस्लिम विरोधी बन गई थी। मानव अधिकार आयोग ने भी उस समय दंगे न रोक पाने के लिए गुजरात सरकार की आलोचना की थी।
किताब के पिछले संस्करण में, उपरोक्त पैराग्राफ की पहली लाइन में लिखा है, ‘फरवरी-मार्च 2002 में, गुजरात में मुसलमानों के खिलाफ बड़े पैमाने पर हिंसा हुए।’ दोबारा से छपी किताब में ‘मुसलमानों के खिलाफ’ वाली बात नहीं है। एनसीईआरटी ने इस बदलाव का कारण नहीं बताया है।