ब्रिटिश लेखक सैमुएल जॉनसन ने कहा था कि राष्ट्रवाद किसी धूर्त का आखिरी शरण है। शायद इसीलिए हज़ारों करोड़ के घोटाले कहीं और नहीं बल्कि रक्षा क्षेत्र में अंजाम दिए जाते हैं।

ऐसे घोटाले कई बार सामने आ चुके हैं। और अब मोदी सरकार पर भी इसी तरह के घोटालों के आरोप लग रहे हैं।

राफेल विमान डील के बाद आरोप है कि मोदी सरकार ने अमेरिका से लड़ाकू AH-64E अपाचे हेलीकॉप्टर को महंगे दामों में खरीदा है।

13 जून को ही अमेरिका ने इस समझौते को मंज़ूरी दी है।

समझौते के मुताबिक, अमेरिका 930 मिलियन डॉलर यानि लगभग 6200 करोड़ रुपये में भारत को छह AH-64E अपाचे हेलीकॉप्टर देगा। मतलब एक हेलीकॉप्टर की कीमत 1000 करोड़ से ज़्यादा हुई।

2015 में बोईंग और अमेरिकी सरकार के बीच 35 लड़ाकू AH-64E अपाचे हेलीकॉप्टर बनाने के लिए 591 मिलियन डॉलर (3,955 करोड़ रुपये) की डील थी। मतलब एक हेलीकॉप्टर की कीमत हुई लगभग 113 करोड़ रुपये।

जब अमेरिकी सरकार ने तीन साल पहले इन हेलीकॉप्टर को इतने सस्ते दामों में खरीदा था तो भारत सरकार लगभग 10 गुना महंगे दामों में इन्हें क्यों खरीद रही है ?

इसी तरह फ़्रांस से राफेल विमान को भी महंगी कीमतों में खरीदने का आरोप मोदी सरकार पर लग चुका है।

दरअसल, इस तरह के समझौतों में कई बार सामने आया है कि महंगे हथियार खरीदने वाली सरकारों को बेचने वाले की ओर से रिश्वत दी जाती है।

इसके बदले वो जनता के टैक्स का पैसा लुटा देती हैं। ये रिश्वत लेने का राष्ट्रवादी तरीका है।

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