देश की अर्थव्यवस्था दिन-प्रतिदिन बर्बादी की ओर जाती दिख रही है। नोटबंदी और जीएसटी के दुष्प्रभाव खत्म होने का नाम नहीं ले रहे हैं। बीतते समय के साथ ये आधिक उभरकर सामने आ रहे हैं। 2017-18 वित्तीय वर्ष के जो आकड़े आए हैं वो भी इन दुष्प्रभावों से अछूते नहीं हैं।

‘मेक इन इंडिया’ को लेकर सत्ता में आई मोदी सरकार के कार्यकाल में देश का निर्यात इतना ज़्यादा गिर चूका है कि जीडीपी में उसका हिस्सा इस साल पिछले 14 सालों में सबसे कम है। मतलब देश का निर्माण क्षेत्र बहुत ख़राब दौर से गुज़र रहा है। इससे अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि इस क्षेत्र में लोग किस हद तक बेरोजगार हुए हैं।

नोटबंदी और जीएसटी बड़े कारण

नोटबंदी के बाद निर्माण क्षेत्र में भारी नुकसान हुआ है। निर्माण क्षेत्र ज़्यादातर असंगठित क्षेत्र के गली-मोहल्लों के कारखानों में चलता है। नोटबंदी के बाद नकदी की कमी के कारण इस क्षेत्र में लाखों मज़दूर बेरोज़गार हो गए। साथ ही हज़ारों लोगों को अपने काम बंद करने पड़ गए।

इसके अलावा एक्सपोर्टर्स जीएसटी में इनपुट टैक्स क्रेडिट फंसने की वजह से ऑर्डर पूरे नहीं कर पा रहे हैं। गौरतलब है कि जीएसटी आने से पहले देश के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए निर्यातकों पर टैक्स नहीं लगाया जाता था।

जीएसटी आने के बाद मोदी सरकार ने कहा कि जैसे ही किसी भी निर्यातक का सामान निर्यात हो जाएगा तो उसके सामान पर लगाया गया टैक्स उसे वापस मिल जाएगा। लेकिन जीएसटी में खामियों के चलते टैक्स निर्यातकों को वापस नहीं मिल पा रहा है जिसके कारण वो निवेश नहीं कर पा रहे हैं।

लगातार GDP में कम हो रही निर्यात की हिस्सेदारी

सेंटर फॉर मोनिटरिंग इंडियन इकॉनमी (सीएमआईई) के आकड़ों के मुताबिक, 2017-18 में देश की जीडपी में निर्यात की हिस्सेदारी 11.65% रही है।

मोदी सरकार आने के बाद निर्यात की हिस्सेदारी जीडीपी लगातार कम हो रही है। 2013 में जीडीपी में निर्यात की हिस्सेदारी 25.43% थी। 2014 में घटकर 23.01% हो गई, 2015 में 19.94%, 2016 में 19.18%, और अब 2017 में ये 11.65% रह गया है।

प्रधानमंत्री मोदी मेक इन इंडिया से देश के निर्माण को बढ़ाने और जीडीपी को डबल डिजिट करने मतलब 10% या उससे ऊपर पहुँचाने के वादे के साथ सत्ता में आए थे लेकिन हकीकत उसके विपरीत नज़र आ रही है।

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