आम जनता के बैंक खाते से लेकर उनके घर में रखे पैसे तक का हिसाब मांगने वाली मोदी सरकार ने राजनीतिक पार्टियों के हक-हिसाब का रास्ता बंद कर दिया है। पारदर्शिता की बात करने वाली मोदी सरकार ने ऐसा संशोधन पास किया है जिसके बाद अब राजनीतिक पार्टियों को मिले विदेशी चंदे की जांच नहीं होगी।

राजनीतिक पार्टियों को 1976 के बाद मिले विदेशी चंदे की अब जांच नहीं हो सकेगी। बुधवार को इससे जुड़े कानून में संशोधन को लोकसभा ने बिना किसी चर्चा के पारित कर दिया। लोकसभा ने विपक्षी दलों के विरोध के बीच फाइनेंशियल बिल 2018 में 21 संशोधनों को मंज़ूरी दे दी। उनमें से एक संशोधन विदेशी चंदा नियमन कानून, 2010 से जुड़ा था।

इससे भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिल सकता है। अंतर्राष्ट्रीय कम्पनियाँ अक्सर देश में अपने कई अवैध काम कराने सत्ता में काबिज़ पार्टी को फंड के रूप में रिश्वत देती हैं। अब ये पता ही नहीं चलेगा कि कौनसी कंपनी किस पार्टी को किना चंदा दे रही है।

क्या है नया नियम

नए संशोधन के अनुसार 1976 से अब तक पार्टियों को मिले विदेशी फंड की जांच नहीं की जा सकती है। इस संशोधन के बाद भाजपा और कांग्रेस को 2014 के दिल्ली हाई कोर्ट के उस फैसले से राहत मिल जाएगी जिसमें इन दोनों ही पार्टियों को FCRA का उल्लंघन करने का दोषी माना गया था

पहले क्या था कानून

FCRA 1976 में पारित किया गया। इसमें भारतीय और विदेशी कंपनी जो विदेश में पंजीकृत है अथवा उसकी शाखा विदेश में है उसे विदेशी कंपनी माना गया था। इसके स्थान पर बाद में संशोधित कर इसकी जगह FCRA 2010 लाया गया। इसमें कहा गया था कि 2010 के बाद मिले चंदे की जांच नही की जा सकती।

इसके बाद भाजपा सरकार ने वित्तअधिनियम 2016 के ज़रिये विदेशी कंपनी की परिभाषा में भी बदलाव किया। इसमें कहा गया कि अगर किसी कंपनी में 50 प्रतिशत से कम शेयर पूंजी विदेशी इकाई के पास है तो वह विदेशी कंपनी नहीं कही जायेगी।

पिछले हफ्ते जिस संशोधन को लोकसभा ने पारित किया है उससे पहले कानून के मुताबिक 26 सितंबर 2010 से पहले जिन राजनीतिक दलों को विदेशी चंदा मिला, उनकी जांच की जा सकती थी। लेकिन अब ये कानून भी ख़त्म हो गया है और 2010 से पहले मिले विदेशी चंदे की जांच भी नही की जा सकती है।

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