‘मेरे देश के किसी गरीब के सामने ऐसी स्थिति नहीं आए कि उसे अस्पताल जाना पड़े, अगर वो अस्पताल जाते भी है तो उन्हें सरकारी अस्पतालों में अमीरों जैसा लाभ मिलेगा।’ मगर पीएम मोदी ये बताना भूल गए कि कार्ड होने के बावजूद अगर किसी शख्स की मौत हो जाती है तो उसकी मौत का ज़िम्मेदार कौन होगा और इसकी जवाबदेही किसकी है?

इस बार मामला बीजेपी शासित उत्तर प्रदेश के बरेली जिले का है जहां 59 साल के एक शख्स की इलाज ना मिलने के चलते मौत हो गई। हैरान करने वाली बात ये है कि आयुष्मान कार्ड लेकर बीमारी हालत में एक बुजुर्ग शहर के चार अस्पताल का चक्कर लगाता रहा मगर उसका इलाज करने के लिए कोई तैयार ही नहीं हुआ,जिसके बाद आखिर उसने दम तोड़ दिया।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार बरेली रहने वाले मतबूल हुसैन की रात को अचानक तबीयत खराब हो गई। हुसैन को भरोसा था कि उन्हें प्रधानमंत्री मोदी की महत्वाकांक्षी योजना ‘आयुष्मान भारत योजना’ का कार्ड बचा सकता है।

वो अपने घरवालों के साथ शहर के 4 निजी अस्पतालों में रात 9 बजे से बुधवार सुबह 3 बजे तक अस्पताल दर अस्पताल भटकता रह गए जिस भी अस्पताल में वो जाता वो आयुष्मान कार्ड का नाम सुनकर ही अस्पतालों ने इलाज करने से मना कर देते। इन चारों अस्पताल में किसी ने डॉक्टरों किल्लत का बहाना दिया तो किसी ने बेड ना खाली होने बहाना बताकर बिना इलाज किए ही बुजुर्ग को अस्पताल से वापस कर दिया।

बुजुर्ग की मौत की ख़बर जब सोए हुए प्रशासन को लगी तब स्वास्थ विभाग हरकत में आया। विभाग ने बिना देरी किए जांच के आदेश दिए हैं। अब सवाल ये उठता है कि मोदी सरकार की आयुष्मान भारत योजना के तहत गरीब कार्डधारकों का निजी अस्पताल में 5 लाख तक के इलाज का करने का सपना जो दिखाया गया। उसमें अगर किसी शख्स का इलाज ही ना हो तो फिर उसकी मौत का ज़िम्मेदार कौन है? अस्पताल या सरकार या फिर योजना पर भरोसा करने वाला मतबूल हुसैन।

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