ऑटो सेक्टर में लगातार आई गिरावट पर वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने चौकाने वाला बयान दिया है। उन्होंने कहा कि लोग अब खुद का वाहन खरीदकर मासिक किस्त देने के बजाए ओला (OLA) और उबर (UBER) जैसी आनलाइन टैक्सी सेवा प्रदाताओं के जरिये वाहनों की बुकिंग को तरजीह दे रहे हैं।
वित्तमंत्री के इस बयान पर आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया दी है। सिंह ने लिखा- वाह रे वित्त मंत्री जी, आपके अर्थशास्त्र ने तो सबके होश ही उड़ा दिये मा. मंत्री जी ओला उबर देश के कितने शहरों में चलता है? चलिये मान भी लें आपकी बात तो ओला उबर से कार की ख़रीद में कमी आयेगी ट्रक की ख़रीदारी क्यों कम हो रही है?
वाह रे वित्त मंत्री जी आपके अर्थशास्त्र ने तो सबके होश ही उड़ा दिये मा. मंत्री जी ओला उबर देश के कितने शहरों में चलता है? चलिये मान भी लें आपकी बात तो ओला उबर से कार की ख़रीद में कमी आयेगी ट्रक की ख़रीदारी क्यों कम हो रही है? https://t.co/P7xG4oIGKF
— Sanjay Singh AAP (@SanjayAzadSln) September 10, 2019
दरअसल वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को ऐसी सफाई इसलिए देनी पड़ रही हैं, क्योंकि पिछले महीने 21 साल में सबसे कम कार बिकी है। ऑटो मेकर्स की संस्था SIAM ने जब से बिक्री का डेटा रखना शुरू किया है, तब से कार-बाइक की बिक्री में इतनी बड़ी गिरावट नहीं दर्ज की गई है।
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घरेलू बाजार में इस महीने कारों की बिक्री में 41 फीसदी से ज्यादा की गिरावट आई है। व्हीकल मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों के संगठन SIAM की तरफ से जारी आंकड़ों के मुताबिक अगस्त में पैसेंजर व्हीकल्स, टू व्हीलर्स सहित अन्य वाहनों की बिक्री में ओवरऑल 23.55 प्रतिशत (YoY) की कमी आई है।
गौरतलब हो कि चालू वित्त वर्ष 2019-20 की पहली तिमाही (अप्रैल-जून) में देश की जीडीपी ग्रोथ रेट गिरकर महज 5 फीसदी रह गई है। जीडीपी किसी खास अवधि के दौरान वस्तु और सेवाओं के उत्पादन की कुल कीमत है। भारत में जीडीपी की गणना हर तीसरे महीने यानी तिमाही आधार पर होती है। ध्यान देने वाली बात ये है कि ये उत्पादन या सेवाएं देश के भीतर ही होनी चाहिए।
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इससे पहले मार्च तिमाही में जीडीपी 5.80 फीसदी रही थी। जबकि पिछले वित्त वर्ष की पहली तिमाही विकास दर 8 फीसदी दर्ज की गई थी। मौजूदा जीडीपी बीते 25 तिमाहियों मतलब कि पिछले 6 साल से अधिक वक़्त में ये सबसे कम जीडीपी ग्राथ रेट है।
बता दें कि देश में ऑटो सेक्टर की प्रमुख कंपनियां इस वक्त मंदी की मार से परेशान हैं। मंदी के चलते मारूती, टाटा और महिंद्रा जैसी कंपनियों की कई मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स बंद हो चुकी हैं। जिससे तकरीबन 10 लाख कर्मचारियों की नौकरी ख़तरे में आ गई है।