कृषि कानूनों को लेकर कटघरे में खड़ी मोदी सरकार ने लगभग एक साल बाद उन्हें वापस लेने के लिए संसद में बिल पेश किया, और बिल पास भी हो गया। लेकिन इन कानूनों की वापसी ने भी सरकार पर कई सवाल खड़े कर दिए हैं।
दरअसल, संसद के शीतकालीन सत्र के पहले दिन लोकसभा और राज्यसभा में सरकार ने विवादास्पद कृषि कानूनों की वापसी का बिल पास करवा लिया। राष्ट्रपति की मंज़ूरी मिलते ही तीनों कानून वापस हो जाएंगे।
हालाँकि, बिल पेश करने के समय विपक्षी दलों ने उसपर चर्चा की मांग की जिसे सरकार ने नज़रअंदाज़ कर दिया। विपक्ष इसे अलोकतांत्रिक कदम बता रहा है।
कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने मोदी सरकार पर निशाना साधते हुए कहा, “ठीक है एक साल तीन महीने बाद आपको ज्ञान प्राप्त हुआ और आपने बिल को वापस लिया। लेकिन पिछले एक साल से सभी ने कृषि कानूनों का विरोध किया, फिर भी सरकार नहीं मानी। सारे देश में इसके खिलाफ माहौल बन गया और उसका असर उपचुनाव में भी महसूस हुआ। अब पांच राज्यों में चुनाव हैं, इसलिए ये फैसला लिया गया। 700 लोग मर चुके हैं।”
समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने मीडियकर्मियों से बात करते हुए कहा, “ये भाजपा बताए कि जिन कानूनों का किसान लगातार विरोध कर रहे थे, उस समय इनमें क्या अच्छाई थीं जो भाजपा बता रही थी? आज उन्हीं कानूनों को भाजपा ने वापस ले लिए हैं और कह रहे हैं कि किसान के हक़ में वापस लिया है। तो कानून पहले हक़ में था, या अभी हक़ में है? भारतीय जनता पार्टी के लिए वोट सबसे बड़ी चीज़ है, उन्हें वोट चाहिए। कानून लागू होने से वोट मिल जाएगा तो कानून लागू कर देंगे। कानून हटाने से वोट मिल जाएगा तो कानून हटा देंगे।”
विपक्षी दलों का आरोप है कि सरकार ने कृषि कानूनों को लाते समय भी चर्चा नहीं की थी, और उन्हें हटाते समय भी संसद में चर्चा नहीं की।
प्रधानमंत्री मोदी ने एक हफ्ते पहले देश से माफ़ी मांगते हुए कहा था कि सरकार कृषि कानूनों को वापस करने की प्रक्रिया संसद के शीतकालीन सत्र में पूरी करेगी। पिछले एक साल से किसान इन कृषि कानूनों के खिलाफ देशभर में आंदोलन कर रहे हैं। लगभग 700 लोग अपनी जान भी गंवा चुके हैं। किसान नेताओं ने सरकार के कानून वापसी के निर्णय का स्वागत करते हुए अपनी दूसरी मांगों को भी उठाया है। जिसमें एमएसपी पर कानून समेत 700 ‘शहीद किसानों’ के परिजनों के लिए मुआवज़े की मांग भी शामिल हैं।