इलाहाबाद उच्च न्यायलय ने उत्तर प्रदेश की सरकार को फ़र्ज़ी एनएसए लगाने के लिए जमकर लताड़ा है।

मंगलवार को इलाहाबाद न्यायपालिका ने एनएसए के तहत प्रतिबंधात्मक बंदी को चुनौती देने वाली 120 याचिकाओं में फैसला सुनाया है। इनमे सबसे ज़्यादा मामले कथित गौ-हत्या से जुड़े हैं।

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, कोर्ट के सामने पेश हुए एक तिहाई से अधिक, 41 मामले गौ हत्या से जुड़े पाए गए। सभी आरोपी अल्पसंख्यक समुदाय से हैं।

इन सभी पर जिला मजिस्ट्रेट द्वारा एफआईआर के आधार पर गौहत्या का आरोप लगाया गया था।

इनमें से 30 मामलों में-70% से अधिक-उच्च न्यायालय ने यूपी प्रशासन की विश्वसनीयता को कठघरे में घसीटा और तुरंत एनएसए के आदेश को रद्द करने का फैसला सुनाया व तुरंत याचिकर्ताओं की रिहाई के लिए कहा।

बचे 11 गौहत्या के मामलों (सिवाय एक) में जिनमे आरोपियों को हिरासत में रखा गया, उसपर फैसला सुनाते हुए उच्च न्यायालय ने उन्हें भी रिहा करने को कहा।

इससे पहले निचली अदालत ने भी इन आरोपियों को रिहा करने का आदेश दिया था। बावजूद इसके पुलिस ने इन सभी 11 आरोपियों को हिरासत में रखा।

इंडियन एक्सप्रेस की जांच से ये पता चलता है कि इन मामलों मे एनएसए लगाना एक साजिश के तहत किया गया। जैसे ही आरोपी बेल के लिए अर्ज़ी लगाता या उसकी रिहाई का समय नज़दीक आता, उसपर डिस्ट्रिक्ट मेजिस्ट्रेट द्वारा ज़बरदस्ती एनएसए थोपा जाता था।

ऐसा इसलिए भी कि पुलिस को शक था आरोपी की रिहाई के बाद वो गौ-हत्या जैसी सामाजिक व्यवस्था को उथल-पुथल करने वाली गतिविधियों में “दोबारा” शामिल हो सकता है।

बता दें कथित गोहत्या से जुड़े मामलों पर 41 फैसले इलाहाबाद हाईकोर्ट की दो जजों की बेंच ने दिए, जिसमें कुल 16 जज शामिल थे। 11 हिरासत मामलों में फैसला सुनते हुए अदालत ने “दिमाग का इस्तेमाल” न करने के लिए डीएम को जमकर सुनाया।

13 मामलों में, अदालत ने कहा कि हिरासत में लिए गए व्यक्ति को एनएसए को चुनौती देते हुए प्रभावी ढंग से प्रतिनिधित्व करने के अवसर से वंचित किया गया। छः हिरासतों में पुलिस द्वारा सामान दलीलें दी गई।

जैसे कुछ “अज्ञात व्यक्ति” मौके से भाग गए; घटना के कुछ मिनट बाद, पुलिस कर्मियों पर “हमला” किया गया; पुलिस पार्टी पर हमले के कारण; लोगों में अफरा-तफरी मचने से भगदड़ का माहौल बन जाना, “माहौल के कारण, लोग अपने दिन के काम में शामिल नहीं हो रहे हैं”; आरोपी के कार्य के कारण, “क्षेत्र की शांति और शांति और कानून और व्यवस्था की स्थिति बहुत खराब हो गई थी”।

इसी प्रकार दो एनएसए के आदेशों में समान आधार हैं: “महिलाएं, विशेष रूप से, अपने घर से बाहर जाने और अपने नियमित काम करने के लिए अनिच्छुक हो गईं”; और यह कि “जीवन की गति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा और सार्वजनिक व्यवस्था चरमरा गई”.

रिपोर्ट के अनुसार सात कथित गौ हत्या के मामलों में “क्षेत्र में भय और आतंक के माहौल के फैलने” के कारण एनएसए लगाया गया।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले पर एआईएमआईएम के राष्ट्रीय अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि योगी सरकार एनएसए जैसे कठोर कानून का उपयोग मुसलामानों को जेल में बंद करने के लिए करती है.

उन्होंने ट्वीट कर लिखा, ” एनएसए एक कठोर कानून है जो लोगों को बिना अपराध के भी जेल में डाल देता है। यूपी के सीएम ने इसका इस्तेमाल मुस्लिमों और कमजोर वर्गों को बेबुनियादी मामले दर्ज कर, जेल में डालने के लिए किया है, जिसमें गोहत्या भी शामिल है। फर्जी मुठभेड़ों, पुलिस अत्याचारों और कानून के दुरुपयोग की नज़रअंदाज़ी ने योगी जी के बोले ‘सी-वर्ड’ को धुंधला दिया है.”

ये उसी सरकार की पुलिस है जिसने कुछ दिन पहले गाज़ियाबाद के मंदिर में पानी पीने गए आसिफ को बेरहमी से पीटने वाले श्रृंगी यादव को तुरंत बेल पर ज़मानत दे दी थी।

यूपी पुलिस के लिए एक बच्चे को पीटने से क्षेत्र की शान्ति और कानून व्यवस्था नहीं बिगड़ती। लेकिन कथित गौ-हत्या करना यानी गोकशी करना यूपी पुलिस के लिए एनएसए जितना बड़ा “आतंकी” ज़ुल्म है।

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