मोदी सरकार एक के बाद एक जो भी बड़े फैसले ले रही है, उसके खिलाफ खुद सरकारी कर्मचारी सड़कों पर आवाज उठा रहे हैं। बीजेपी सरकार में भयंकर मंदी के दौर से गुजर रही देश की अर्थव्यवस्था को सुधारने के नाम पर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 10 सरकारी बैंकों का विलय करने की घोषणा की थी।

अब सरकारी बैंकों के विलय के विरोध में बैंक की 4 कर्मचारी यूनियन ने 25 और 27 सितंबर तक हड़ताल पर जाने का फैसला किया है। यूनियन का कहना है कि अगर मांगें नहीं मानी जाती हैं तो नवंबर के दूसरे हफ्ते से बड़ी अनिश्चितकालीन हड़ताल होगी।

नोटबंदी का असर अब सरकारी बैंकों पर, 1 साल में 5500 ATM और 600 बैंक ब्रांचों पर लगे ताले

बता दें कि मोदी सरकार के इस फैसले से देश में सरकारी बैंकों की संख्या मौजूदा 27 से घटकर 12 रह जाएगी। सरकारी बैंक पहले से ही कर्ज में डूबे हुए हैं, बैंकों पर 17.5 लाख करोड़ का कर्ज यानि NPA (नॉन प्रॉफिट एसेट) चढ़ा हुआ है। इसकी एक बड़ी वजह विजय माल्या, नीरव मोदी, मेहुल चोकसी जैसे बड़े डीफॉल्टर हैं, जिन्होंने बैंक से कर्ज लेकर रकम नहीं चुकाई। अब इस बैंक मर्जर का असर बैंक कर्मचारियों से लेकर आम उपभोक्ताओं तक पर हो सकता है।

जानकारों के मुताबिक, अगर कर्मचारी हड़ताल पर जाते हैं तो बैंकों के कामकाज पर भारी असर होगा। इसीलिए ऐसे में उपभाक्ताओं को इस हड़ताल के हिसाब से ही अपने काम को निपटाना होगा। बता दें कि नोटबंदी में घंटों लाइन में लगने के बाद अब आम जनता को एक बार फिर बैंकों में अपने काम के लिए घटों धक्के खाना पड़ सकता है।

सीतारमण के निर्णय के बाद से ही देश भर में बैन कर्मचारी शांतिपूर्ण तरीके से विरोध कर रहे हैं। लेकिन अब बड़े स्तर पर मजबूती से इस फैसले का विरोध करने के लिए चार कर्मचारी यूनियन हड़ताल करने जा रही हैं। अब ये देखना है कि पहले से ही मंदी झेल रहे देश में नाराज सरकारी कर्मचारियों की मोदी सरकार कैसे संभालती है? और आम नागरिकों को राहत कैसे देती है?

साभार- न्यूज़ 18

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