2 महीने पहले उत्तर प्रदेश जिला पंचायत के नतीजे आए तो एक बात स्पष्ट हो गई थी कि भारतीय जनता पार्टी की एकतरफा लोकप्रियता अब खत्म हो रही है।
3050 जिला पंचायत सदस्यों वाले उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार आधिकारिक रूप से सात सौ का आंकड़ा भी नहीं छू सके, जबकि प्रमुख प्रतिद्वंदी समाजवादी पार्टी ने आठ सौ का आंकड़ा पार कर लिया था।
इसके बाद भारतीय जनता पार्टी का चौतरफा घेराव होने लगा था साथ ही पार्टी में भी सवाल उठने लगा था कि योगी के नेतृत्व में भाजपा के इस बुरे प्रदर्शन के लिए जिम्मेदार कौन है!
पिछले 2 महीने में हुई किरकिरी की भरपाई, योगी सरकार और पुलिस प्रशासन ने अब 3 जुलाई को कर लिया है।
दरअसल जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में भाजपा को 75 में से 65 सीटों पर जीत मिली है, यानी 80% से ज्यादा सीटों पर भाजपा को जीत मिली है। जबकि जनता ने इसके ठीक उलट मतदान किया था।
वैसे तो पंचायत चुनाव में हमेशा ही सत्ताधारी पार्टी का दबदबा दिखता है मगर इस बार पंचायत के आम चुनाव में हारने वाली भाजपा ने सदस्यों को हर उस तरीके से मैनेज किया कि वोट उसी को मिले।
आखिरकार सफलता भी मिली। मगर अब समाजवादी पार्टी इनपर धांधली और गुंडागर्दी का आरोप लगा रही है।
प्रयागराज, अयोध्या, संभल समेत पूरे उत्तर प्रदेश से खबरें और वीडियो सामने आ रही हैं कि पुलिस प्रशासन ने कैसे सत्ताधारी दल के पक्ष में काम किया है।
प्रयागराज में नाराज सपा कार्यकर्ताओं से पुलिस की हिंसक झड़प भी हुई और सपा नेता संदीप यादव के सिर में गहरी चोट अभी आ गई।
संभल में पुलिस प्रशासन के सामने ही सपा और भाजपा के कार्यकर्ता, नेता आपस में भिड़ते रहे, वहीं अयोध्या में सपा नेता ने आरोप लगाया कि प्रशासन के साथ मिलकर योगी सरकार लोकतंत्र की हत्या कर रही है।
फिलहाल अंतिम रूप में विजय भाजपा को ही मिली है, मगर इस चुनौती के साथ कि जनता के बीच खोते हुए जनाधार को वो कैसे बचाए।
अगर पंचायत के आम चुनाव की तरह विधानसभा के आम चुनाव में वोटिंग हुई तो 2022 में भाजपा के लिए सत्ता बचाना मुश्किल हो जाएगी।