मुंबई में मेट्रो के लिए पेड़ काटे जा रहें है। इसी मामले को लेकर बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की गई है जिसपर सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस ने सरकार को खरी खरी सुनाई। चीफ जस्टिस प्रदीप नंदराजोग और भारती डांगरे ने कहा कि जब सरकार के पास इतने संसाधन होने के बाद राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था नहीं संभाल पा रही है तो वो कैसे इकोलॉजी को संभाल पाएगी।

दरअसल मुंबई के गोरेगांव में मेट्रो की तीसरे फेज के लिए हरित क्षेत्र आरे कॉलोनी में 2600 पेड़ों की कटाई का विरोध करते हुए यह जनहित याचिका दायर की गयी है।

याचिका दायर करने व्वाले पर्यावरण कार्यकर्ता जोरू बाथेना ने बृहन्मुबई महानगरपालिका (बीएमसी) के वृक्ष प्राधिकरण से मुम्बई मेट्रो रेल निगम लिमिटेड को आरे क्षेत्र में 2646 पेड़ों को काटने के लिए 29 अगस्त को मिली मंजूरी को चुनौती दी है।

बाथेना के वकील ने कोर्ट में कहा कि पेड़ प्रशासन प्रशासन ने निर्णय लेने में दिमाग नहीं लगाया और वृक्ष अधिनियम के प्रावधानों का पालन किये बगैर ‘हड़बड़ी’ में यह निर्णय ले लिया गया है।वकील ने कहा कि मेट्रो परियोजना जितनी महत्वपूर्ण है उतनी ही शहर की हरियाली भी महत्व रखती है।

इस दलील को सुनने के बाद जजों ने कहा कि विकास बनाम पर्यावरण विवाद का विषय है और इससे याचिकाकर्ता के तर्कों में एक नया बिंदु जुड़ेगा।

साथ में चीफ जस्टिस ने सरकार की आलोचना करते हुए कहा कि सारे उत्तम संसाधन होने के भी यदि सरकार राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था नहीं संभाल सकती है तो कैसे वह पारिस्थितिकी को संभाल पाएगी।’ उन्होंने कहा उसके पास सर्वश्रेष्ठ अर्थशास्त्री हैं लेकिन फिर भी कुछ कमी तो है।’ मामले की सुनवाई मंगलवार को भी जारी रहेगी।

बता दें कि मुंबई के गोरेगांव स्थित 3200 एकड़ में फैले आरे फॉरेस्ट को मेट्रो कार डिपो के निर्माण के लिए हटाया जा रहा है। 1000 एकड़ जमीन पर पहले ही अतिक्रमण और निर्माण कार्य हो चुका है। बाकी 2200 एकड़ जमीन में से 90 एकड़ पर कुलाबा-बांद्रा-सीप्ज मेट्रो-3 के लिए कारशेड बनाया जाएगा। दावा है कि यहां 3600 पेड़ हैं। मेट्रो प्रोजेक्ट के लिए इसमें से 2700 पेड़ काटे जाएंगे।

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