कोरोना की दूसरी वेव पिछली वाली से भी दोगुना ज़्यादा खतरनाक साबित हो रही है। इसके कारण बहुत से लोगों की जान जा रही है, शमशान घाटों में लाशें जल रही हैं और सरकार पर मौत का असली आंकड़ा छुपाने के आरोप लग रहे हैं।

मीडिया में खबरें आ रही है कि कोरोना से हुई मौतों का सरकारी डेटा और शमशानों में जल रही चिताओं का आंकड़ा कहीं मेल नहीं खा रहा है।

‘द वायर’ में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, वाराणसी में कोरोना के कारण मरे लोगों की लाशों को शमशानों और कब्रिस्तानों में लाया तो जा रहा है, लेकिन उनमें से आधों को आधिकारिक आंकड़ों में दर्ज किया जा रहा है।

ये आंकड़ा 1 अप्रैल से 15 अप्रैल तक का है। वाराणसी के अलावा प्रदेश के दूसरे शहरों में भी कोरोना के चलते लोग परेशान हैं।

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के बैकुंठधाम श्मशान घाट की एक वीडियो वायरल हुई थी जिसमें बहुत सी चिताएं एक साथ जलती हुई दिख रही थी। इसके बाद इस श्मशान घाट को ढकवा दिया गया।

‘हिंदुस्तान टाइम्स’ की ग्राउंड रिपोर्ट के मुताबिक आधिकारिक आंकड़े बताते हैं कि ग़ाज़ियाबाद में अप्रैल महीने में अब तक 2 लोगों की कोरोना के कारण मौत हुई है।

हालांकि, हिंडन श्मशान घाट पर लाशों का अंबार लगा हुआ है। शवों को फुटपाथ पर जलाया जा रहा है।

इसी के साथ-साथ मध्य प्रदेश के हालात भी कुछ अलग नहीं है। 15 अप्रैल को ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ में पब्लिश हुई ख़बर में बताया गया है कि सरकारी आंकड़ों और श्मशान घाटों में आई लाशों में बहुत बड़ा फासला है।

ख़बर के मुताबिक, इंदौर के 5 श्मशान घाटों में इस महीने के 13 तारीख तक 400 कोरोना मरीजों के शव जलाए गए।

दैनिक भास्कर अखबार के मुताबिक कोरोना से हो रही मौतों को छुपाने का खेल देशभर में चल रहा है।

जैसे 15 अप्रैल को लखनऊ में कोरोना प्रोटोकॉल से 105 शव जलाए गए जबकि सरकारी आंकड़े सिर्फ 26 के दिए गए।
यानी एक ही दिन में 79 शवों का रिकॉर्ड छुपाया गया।
इसी तरह रायपुर में भी हुई 102 मौतों में सिर्फ 65 बताया गया।

मुंबई, सूरत, भोपाल सब जगह का यही हाल है। कोरोना प्रोटोकॉल से जितने शव को जलाया जा रहा है, सरकारी आंकड़े उससे बहुत कम का जिक्र कर रहे हैं।

खबरों में बताया और दिखाया जा रहा है कि कैसे श्मशान घाटों और क़ब्रिस्तानों में शवों का अंबार लगा हुआ है। जिन लोगों को बीमारी से बचाया नहीं जा सका, उनको अब सरकारी आंकड़ों में भी जगह नहीं मिल रही है।

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