उत्तर प्रदेश में सरकारी प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षकों की कमी किसी से छुपी नहीं है। बेसिक एजुकेशन डिपार्टमेंट के ताजा आंकड़ों में ये साफ देखा जा सकता है।

पूरे प्रदेश में 72 हजार से भी ज्यादा शिक्षकों की जगह खाली पड़ी हुई है।

हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, सरकार द्वारा संचालित 1,13,289 स्कूलों और 45,625 उच्च प्राथमिक स्कूलों में कुल 72 हजार 712 सहायक शिक्षकों की पोस्ट रिक्त पड़ी हुई हैं। इसमें से 62 हजार 261 उच्च प्राथमिक स्कूलों के शिक्षकों की हैं वहीं, सरकारी प्राथमिक स्कूलों में 9,451 शिक्षकों की जरूरत है।

जून 2021 के सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, उत्तर प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में 51,112 शिक्षकों के पद खाली हैं। वहीं शहरी क्षेत्रों में 13,653 पदों में से केवल 1524 पदों पर ही शिक्षक पदस्थ हैं। बाकी 12,128 पद शहरी स्कूलों में भी बंद पड़े हैं।

प्राथमिक शिक्षा की ये बदहाली योगी आदित्यनाथ के उत्तर प्रदेश में हो रही है लेकिन फिर भी वो खुद और भाजपा के अन्य नेता अपनी सरकारी की तारीफ करते नहीं थकते हैं।

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट में शिक्षा विभाग के 2 अधिकारियों ने नाम ना बताने की शर्त पर ये भी खुलासा किया है कि शहरी स्कूलों की ज्यादातर पोस्टिंग ग्रामीण क्षेत्रों के शिक्षकों के तबादले से ही किया जाता है।

ग्रामीण क्षेत्रों में पदस्थ शिक्षकों को नौकरी के कुछ सालों बाद आस पास के शहरों में भेजा जाता है लेकिन 2011 के बाद से ये तबादले भी नहीं हुए हैं। इसलिए ग्रामीण के साथ साथ शहरी क्षेत्रों में भी अब शिक्षकों की कमी बनी हुई है।

एक साथ इतनी बड़ी मात्रा में शिक्षकों की कमी होने का एक बड़ा कारण ये भी माना जा रहा है कि हर साल बहुत बड़ी संख्या में शिक्षक रिटायर हो रहे हैं।

लेकिन नयी भर्तियां रुकी हुई हैं। इससे शिक्षकों के साथ साथ ज्यादातर स्कूलों में प्रिंसिपल के पद भी खाली पड़े हुए हैं।

बेसिक एजुकेशन डिपार्टमेंट द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार ग्रामीण और शहरी स्कूलों को मिलाकर कुल 53,778 स्कूल बिना प्रिंसिपल के चल रहे हैं।

मामले पर चिंता जताते हुए इलाहाबाद-झांसी डिविज़न के टीचर MLC सुरेश कुमार त्रिपाठी ने कहा है, “सरकार का मूल शिक्षा देने में असफल होना छात्रों के साथ अन्याय है। इतनी बड़ी संख्या में शिक्षकों की भर्ती पूरी नहीं हो जाती तब तक 2009 में जो शिक्षा के अधिकार अधिनियम के साथ हर छात्र को शिक्षित करने का सपना था, वो और दूर होता जाएगा।

साथ ही जो थोड़े बहुत शिक्षक अभी पदस्थ हैं और छात्रों को पढ़ा रहे हैं, उन पर भी क्षमता से ज्यादा कार्य करने का दबाव बना हुआ है। ये छात्रों के साथ साथ उन सभी शिक्षकों के लिए भी हानिकारक है।”

दुनियाभर के झूठे वादे करने वाली योगी सरकार को अपने राज्य में प्राथमिक शिक्षा की बदहाली पर क्या कहती है अब देखना होगा।

शिक्षकों की इतनी बड़ी संख्या में भर्ती ना होने से प्रदेश में बेरोजगारी पर भी सवाल उठता है। इतने रिक्त पदों के बावजूद बेरोजगारों की संख्या कम नहीं हो रही। वहीं प्राथमिक शिक्षा का स्तर भी लगातार गिर रहा है।

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