इंसानी कानून भी गजब है। जानवरों के जंगल पर इंसान लगातार कब्जा कर रहे हैं। और सजा जानवरों को दी जा रही है। जानवर शब्द को इनता नकारात्मक बना दिया गया है कि इसका इस्तेमाल बुरे प्रतीक की तरह होने लगा है।

न्याय मिलने की सबसे ज्यादा संभावना उसकी होती है जिसका कानून पर कब्जा होता है। अगर कानून पर सवर्णों का कब्जा होगा तो जाहिर है दलितों का ध्यान न्यूनतम रखा जाएगा। अगर जंगल का कानून भी इंसान बनाएंगे तो जाहिर है जानवरों से ज्यादा उद्योगपतियों का ध्यान रखा जाएगा।

इसका ताजा उदाहरण महाराष्ट्र के यावतमाल जंगलों में देखने को मिला है। दरअसल महाराष्ट्र की बीजेपी सरकार पिछले कुछ सालों से बाघिन टी1 (अवनि) की हत्या करना चाहती थी। क्योंकि सरकार और उनके विभाग को ऐसा लगता है कि अवनि पर आदमखोर हो चुकी थी।

सरकार अपने इस मकसद में कामयाब भी हो गई। 2 नवंबर की देर रात यावतमाल जिले के जंगल में अवनि की हत्या कर दी गई। अवनि को बचाने के लिए पिछले कई महीनों से मुहिम भी चल रही थी और इस दौरान राष्ट्रपति से लेकर प्रधानमंत्री तक लोगों ने गुहार लगाई थी, लेकिन कोई अपील काम नहीं आ पाई।

सुप्रीम कोर्ट से लेकर हाईकोर्ट तक से आवनि की हत्या का आदेश मिल चुका था। हालांकि अवनी को मारने में कोर्ट के नियमों का उल्लंघन भी हुआ। क्योंकि कोर्ट की ओर से कहा गया था कि बाघिन को पहले बेहोश करने की कोशिश करना होगा ।

अवनि दो छोटे बच्चों की मां थी। ये बच्चे इतने छोटे हैं कि बिना के मां इनकी मौत लगभग निश्चित है। इस तरह हत्या सिर्फ अवनि की नहीं उसके दो छोटे बच्चों की भी की गई है। अभी मामला खत्म नहीं हुआ है क्योंकि सरकार अवनि के मेल पार्टनर T2 की भी हत्या करना चाहती है।

अगर जंगलों पर इंसान कब्जा होगा तो जानवार कहां जाएंगे? अवनि के मामले में एनवॉयरमेंट एक्टिविस्ट का कहना है कि जंगल में अवैध घास चराई, अवैध अतिक्रमण और एक प्राइवेट सीमेंट फैक्ट्री के विस्तार के चलते जानवरों का इंसानों से टकराव बढ़ गया है।

कई बार ऐसा होता है जानवर खाना पानी की तलाश में रिहायशी इलाकों में आ जाते हैं, वो रिहायशी इलाके जो कुछ साल पहले तक जंगल हुआ करते थें। ऐसे में जानवरों और इंसानों का टकराव होता है।

अवनि की हत्या भयावह है। साथ ही यह हत्या मौजूदा सरकार कि हिप्पोक्रेसी को भी दर्शाता है। एक तरफ देश के प्रधानमंत्री को पर्यावरण बचाने की कोशिश के लिए ‘चैंपियन ऑफ द अर्थ’ मिलता है। और दूसरी तरफ महाराष्ट्र की सरकार जानवरों का ‘फेक’ एनकाउंटर कर रही है।

5 साल में 13 लोगों के हत्या की आरोपी बाघिन अवनि को मौत की सजा मिली लेकिन नोटबंदी करके 100 से ज्यादा लोगों की जान लेने वाले को कोई सजा नहीं मिलती। क्यों?

जो इंसान खतरनाक से खतरनाक, जटिल से जटिल समस्या का हल निकाल लेता है। उसी इंसान के पास एक बाघिन को मारने के सिवा कोई विकल्प नहीं मिला। क्या अवनि को जिंदा नहीं पकड़ा जा सकता था? क्या उसे किसी दूसरे घने में जंगल में नहीं भेजा जा सकता था? क्या हत्या के अवाला कोई विकल्प नहीं था?

अवनि की मौत में रिलायंस का भी हाथ!

जनवरी 2018 में मोदी सरकार ने अनिल अंबानी की रिलायंस ग्रुप को सीमेंट फैक्ट्री लगाने के लिए यवतमाल के जंगल का 467 हेक्टयर दे दिया था। रिलायंस को जंगल देना कांग्रेस ने 2009 में शुरू किया जिसे मोदी सरकार ने अंतिम मुहर के साथ समाप्त किया।

जाहिर है रिलायंस ग्रुप ने फैक्ट्री लगाने के लिए जमकर जंगलों की कटाई की होगी। जबकि पर्यावरणविद् लगातार इसका विरोध कर रहे थें। उन्होंने तब ही सावधान किया था कि जंगल की कटाई से बाघों को खतरा हो सकता है। लेकिन एनवॉयरमेंट एक्टिविस्टों की बात न कांग्रेस ने सुनी ना ही बीजेपी ने।

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