ऑटो सेक्टर में लगातार आई गिरावट की वजह पर वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने चौकाने वाला बयान दिया था। उन्होंने कहा था कि ‘लोग अब खुद का वाहन खरीदकर मासिक किस्त देने के बजाए ओला और उबर जैसी आनलाइन टैक्सी सेवा प्रदाताओं के जरिये वाहनों की बुकिंग को तरजीह दे रहे हैं।’

लेकिन मारुति सुजुकी इंडिया (एमएसआई) के सेल्स एंड मार्केटिंग विभाग के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर शशांक श्रीवास्तव वित्तमंत्री के ओला-ऊबर वाले बयान से सहमत नहीं है। उन्होंने मीडिया से बात करते हुए कहा कि मौजूदा मंदी के पीछे ओला और उबर जैसी सेवाओं का होना कोई बड़ा कारण नहीं है। मुझे लगता है कि इस तरह के निष्कर्षो पर पहुंचने से पहले हमें और गौर करना होगा और अध्ययन करना होगा।

उन्होंने कहा कि ओला और उबर जैसी सेवायें पिछले 6-7 वर्षो में सामने आई हैं। इसी अवधि में ऑटो उद्योग ने कुछ बेहतरीन अनुभव भी हासिल किये हैं। इसलिए केवल पिछले कुछ महीनों में ऐसा क्या हुआ कि मंदी गंभीर होती चली गई? मुझे नहीं लगता कि ऐसा केवल ओला और उबर की वजह से हुआ है।

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शशांक ने कहा कि मंदी से निपटने के लिए पिछले महीने घोषित किये गये सरकार के उपाय काफी नहीं हैं और ये उपाय उद्योग के लॉन्ग टर्म स्वास्थ्य के लिए मददगार हो सकते हैं, क्योंकि ये बुनियादी तौर पर ग्राहकों की धारणाओं पर ध्यान देते हैं।

गौरतलब हो कि चालू वित्त वर्ष 2019-20 की पहली तिमाही (अप्रैल-जून) में देश की जीडीपी ग्रोथ रेट गिरकर ​महज 5 फीसदी रह गई है। जीडीपी किसी खास अवधि के दौरान वस्तु और सेवाओं के उत्पादन की कुल कीमत है। भारत में जीडीपी की गणना हर तीसरे महीने यानी तिमाही आधार पर होती है। ध्यान देने वाली बात ये है कि ये उत्पादन या सेवाएं देश के भीतर ही होनी चाहिए।

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इससे पहले ​मार्च तिमाही में जीडीपी 5.80 फीसदी रही थी। जबकि पिछले वित्त वर्ष की पहली तिमाही विकास दर 8 फीसदी दर्ज की गई थी। मौजूदा जीडीपी बीते 25 तिमाहियों मतलब कि पिछले 6 साल से अधिक वक़्त में ये सबसे कम जीडीपी ग्राथ रेट है।

बता दें कि देश में ऑटो सेक्टर की प्रमुख कंपनियां इस वक्त मंदी की मार से परेशान हैं। मंदी के चलते मारूती, टाटा और महिंद्रा जैसी कंपनियों की कई मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स बंद हो चुकी हैं। जिससे तकरीबन 10 लाख कर्मचारियों की नौकरी ख़तरे में आ गई है।

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