दि एशियन एज की मौजूदा महिला पत्रकार और पूर्व पत्रकारों ने दिल्ली के पटियाला कोर्ट में अर्ज़ी लगाई है कि मानहानि के मुक़दमे में उनकी भी गवाही ली जाए। यह अपने आप में एक अप्रत्याशित घटना है।

मीना बघेल, मनीषा पांडे, तुषिता पटेल, कविता गहलौत, सुपर्णा शर्मा, रामोला तलवार बड़म, कनिज़ा गज़ारी, मालविका बनर्जी, ए टी जयंती, हामिदा पारकर, जोनाली बुरागोहेन, संजरी चटर्जी, मीनाक्षी कुमार, सुजाता दत्ता सचदेवा, होईनू हुज़ेल, रश्मि चक्रवर्ती,कुशलरानी गुलाब, आयशा ख़ान, किरण मनराल । ये सब गवाही के लिए तैयार हैं।

भारत भर के कई प्रेस क्लब और महिला पत्रकारों के कई संगठनों ने भी राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, महिला विकास मंत्री, महिला आयोग की अध्यक्षा को पत्र लिखा है। एक तरह से इन संगठनों के ज़रिए कई हज़ार पत्रकार अकबर को हटा कर जाँच की माँग कर रहे हैं। इससे पहले कि देश भर में पत्रकारों के प्रदर्शन शुरू हो जाए, प्रधानमंत्री को अकबर को हटाना पड़ेगा।

आज स्वाति गौतम और तुशिता पटेल ने आरोप लगाए। तुशिता का विवरण पढ़ने के बाद भी अगर विदेश मंत्री सुष्मा स्वराज अकबर को बाहर नहीं करा पाती हैं तो यह बेहद शर्म की बात है।

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अब इस ख़बर को दूसरे लेवल पर मैनेज किया जा रहा है। ऐसी ख़बरें आएँगी जिसमें विरोधी दल के नेता फँसे और आई टी सेल को सक्रिय होने की अनैतिक शक्ति हासिल हो सके। वो ठीक है लेकिन हमें समझना होगा कि मी टू किसी एक दल के न तो ख़िलाफ़ है और न साथ है।

हाँ मोदी सरकार मी टू के ख़िलाफ़ है। मोदी सरकार ने इसे साबित किया है। दुनिया में भारत की छवि ख़राब हो रही है। पर इज़ इक्वल टू के लिए विरोधी दलों के क़िस्सों का इंतज़ार हो रहा है ताकि अकबर को बचाया जा सके।

सोलह महिला पत्रकारों का आरोप सामान्य घटना नहीं है। सबके आरोप में कई बातें सामान्य हैं। पता चलता है कि अकबर मनोरोगी की हद तक अकेली लड़की को बुलाकर हमला करते थे। होटल के कमरे में काम के बहाने बुलाने पर ज़ोर देते थे।

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कमरे में शराब पीने के लिए बर्फ़ निकालने और गिलास में शराब डालने की बात करते थे, अकेले में लड़की को दबोच लेते थे, मुँह में जीभ डाल देते थे, महिला को ख़ुद बुलाकर घंटी बजाने पर अंडरवियर में बाहर आते थे। इस तरह के संगीन आरोप लगाए हैं। जिनके आरोप ज़्यादा संगीन हैं उनके ख़िलाफ़ अकबर ने मानहानि का नोटिस नहीं भेजा है।

इसलिए अकबर का मामला सामान्य नहीं है। सोलह महिलाओं ने आरोप लगाए हैं। राशिद किदवई ने भी उनका समर्थन किया है जो एशियन एज में काम कर चुके हैं। इतनी शिकायतों के बाद भी प्रधानमंत्री मोदी ने अकबर का साथ दिया है तो इसका मतलब इलाहाबाद में भले कुछ न रखा हो, अकबर में काफ़ी कुछ है।

ये अकबर मुग़ल नहीं सरकारी हैं। अकबर राज्य सभा सदस्य हैं। क्या उप राष्ट्रपति को सभापति के नाते जाँच कमेटी नहीं बनानी चाहिए। राजनीति में जाँच के होने तक लोग इस्तीफ़ा देते रहे हैं। सरकार को भी कमेटी बनानी चाहिए थी। अकबर को इस्तीफ़ा देना चाहिए था। मोदी को बर्खास्त करना चाहिए था।

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क्या यह अजीब नहीं है? योगी अकबर के बसाए इलाहाबाद का नाम बदल रहे हैं। मोदी सरकारी अकबर को आबाद कर रहे हैं। अकबर को बदलना पड़ेगा।

कब तक हिन्दी अख़बारों और चैनलों के ज़रिए इस ख़बर को मैनेज किया जाएगा। एक न दिन अकबर को भी मैनेज करना होगा। हटाना होगा।

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