3000 करोड़ की स्टैच्यू ऑफ़ यूनिटी की स्टील, तांबे और लौह की प्रतीकात्मक मूर्ति खड़ा करने से अच्छा होता लौह पुरुष सरदार पटेल जी की नीति, सिद्धांतों और विचारों पर एक ऐसा संस्थान बनाते जिसमें देश के लोकतंत्र, संविधान, एकता और अखंडता एवं आरएसएस जैसे विघटनकारी संगठनों को लेकर उनके विचारों पर अध्ययन किया जाता।

काश! मोदी जी यह मूर्ति मेक इन इंडिया के तहत भारतीय कारीगरों से बनवाते।

मूर्ति है स्टेचू ऑफ़ यूनिटी की लेकिन इसे नज़दीक से देखने के लिए आपको 500 रु ख़र्च करने पड़ेंगे। यही तो मोदी जी का व्यापारिक ख़ून है।

काश! वहाँ किसानों की ज़मीन को ना क़ब्ज़ा कर वही 3000 करोड़ रू किसानों की भलाई या 3000 करोड़ रु में किसानों के बच्चों के लिए कोई विश्वस्तरीय शैक्षणिक संस्थान खुलवाया जाता।

मूर्ति अनावरण के मौक़े पर संवैधानिक पदों पर बैठे देशभर के गुजरातियों को ही स्टेज पर बैठाकर राष्ट्रीय एकता का परिचय दिया। बाक़ी मोदी जी अपने लौहपुरुष आडवाणी को भूल ही गए।

शमशान और कब्रिस्तान की राजनीति करने वाले मोदी की भी एक ‘स्टैच्यू ऑफ़ डिसयूनिटी’ लगनी चाहिए

कथित राष्ट्रवादी लोग जितने की मूर्ति है अब उतना ही प्रचार पर ख़र्च करने की तैयारी करेंगे।

सच्चे भारतीय, आरएसएस विरोधी, पूर्ण सेक्युलर देश के प्रथम उपप्रधानमंत्री सरदार पटेल साहब को सह्रदय नमन

साभार- संजय यादव

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