सबरीमाला मंदिर में महिलाओं की एंट्री को लेकर विवाद अब भी जारी है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद बुधवार को पहली बार सबरीमाला मंदिर खुला। लेकिन उन्मादी भीड़ की हिंसा ने महिलाओं को मंदिर के गर्भ गृह में घुसने नहीं दिया।

पुरुष ही नहीं महिलाएं भी इस हिंसक भीड़ की हिस्सा हैं। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी इन हिंसक प्रदर्शनकारियों का कहना है कि सभी उम्र की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की इजाजत नहीं होनी चाहिए।

अब सवाल उठता है कि क्या महिलाओं के मंदिर प्रवेश का विरोध करने वाले देवदासी प्रथा का भी विरोध करेंगे? देवदासी प्रथा के तहत आज भी मंदिरों में महिलाओं का शोषण हो रहा है। ये कैसा धर्म है जो महिलाओं के मंदिर में प्रवेश करने से संकट में पड़ जाता है लेकिन प्रथा के नाम पर बच्चियों के शोषण से नहीं।

क्या है देवदासी प्रथा?

वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल बताते हैं कि ”अगर बच्ची के बालों में लट पड़ गए, जो गरीब परिवारों में साबुन से न नहाने या गंदगी में रहने के कारण होता है, तो उन्हें बताया जाता है कि अब उस बेटी को देवता को समर्पित करना होगा।

एक आयोजन में बच्ची को मंदिर को समर्पित किया जाता है, जहां पांच लोग मिलकर उसके कपड़े उतारते हैं। उसके बाद उस लड़की की जिंदगी भर शादी नहीं होती। वे मंदिरों में ही रहती हैं। उन्हें सार्वजनिक संपत्ति माना जाता है। वहां क्या होता है, आप जानते हैं। बड़ी संख्या में देवदासियां अंत में वेश्यालयों में पहुंच जाती है।

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने इस पर चिंता जताई है और राज्यों को कहा है कि ये प्रथा बंद कराई जाए। सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक देवदासी प्रथा बंद नहीं हुई है।

सिर्फ कर्नाटक के मंदिरों में राज्य सरकार के मुताबिक 9,733 देवदासियां हैं। मुंबई में उन्होंने अपने कपड़े उतारकर प्रदर्शन किया था। यह प्रथा किसी न किसी रूप में देश के कई हिस्सों में जारी है।”

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