कृष्णकांत
ये मौतें नहीं हैं, ये योजना बनाकर की गई हत्याएं हैं, जिसे सामूहिक नरसंहार कहते हैं।
उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव में ड्यूटी करने वाले 706 शिक्षक कोरोना से मारे गए हैं। सिर्फ इलाहाबाद में 38 शिक्षकों की मौत हुई है और लगभग एक हजार टीचर संक्रमित हैं।
बच्चा बच्चा जानता है कि भीड़ में कोरोना फैलता है, फिर भी चुनाव कराए जा रहे हैं और लोगों को मौत के मुंह में झोंका जा रहा है।
उत्तर प्रदेश शिक्षक महासंघ के लोगों ने प्रदेश सरकार से पंचायत चुनाव स्थगित कराने की मांग की लेकिन उनकी बात नहीं सुनी गई।
महासंघ का दावा है कि कोरोना से उन जिलों में ज्यादा शिक्षकों की मौत हुई है, जहां पंचायत चुनाव हो चुका है।शिक्षक संगठनों का कहना है कि मतगणना में और ज्यादा शिक्षकों की जिंदगी दांव पर है।
संगठन का कहना है कि मौत के मुंह में समाए ज्यादातर शिक्षक चुनाव ड्यूटी के बाद संक्रमित हुए और उन्हें ढंग से इलाज तक नहीं मिला।
उत्तर प्रदेश प्राथमिक शिक्षक संघ के जिलाध्यक्ष एवं प्रदेश उपाध्यक्ष देवेंद्र कुमार श्रीवास्तव का कहना है कि प्रदेश के सभी 75 जिलों में अब तक 550 शिक्षकों का निधन हो चुका है।
जिन परिवारों में कोई अकेला कमाने वाला रहा होगा, अब उन परिवारों का क्या होगा? जिनकी जिंदगी चली गई, क्या सरकार उनके पत्नी बच्चों की जिम्मेदारी लेगी? जवाब है नहीं।
जो सरकार जानती है कि सामने खतरा है फिर भी हजारों लोगों को मौत के मुंह में झोंक दे रही है, वह किसी भी तरह की जवाबदेही नहीं लेगी।
ऐसा लगता है कि केंद्र में या राज्यों में कोई सरकार ही नहीं है. जिन्हें हम नेता और प्रशासक समझ रहे हैं, वह कुछ क्रूर और निष्ठुर कसाइयों का झुंड भर है।
सभी शिक्षक संगठनों को मिलकर सरकार और चुनाव आयोग के खिलाफ सामूहिक नरसंहार का केस दर्ज कराना चाहिए।
(यह लेख पत्रकार कृष्णकांत की फेसबुक वॉल से साभार लिया गया है)