ऋचा सिंह

पिछले 50 सालों की राजनीति पर नज़र डालें तो देश ने एम.पी, एम.एल.ए, कैबिनेट मंत्री, क़द्दावर नेता तो बहुत दिये पर शायद ही या बहुत कम ऐसा नेता दिये जिन्होंने शिक्षा, मेडिकल कॉलेज के क्षेत्र में, उसे बनाने में अपना कोई अहम योगदान दिया हो।
वर्तमान में एक नाम बहुत चर्चा में है “आज़म खां” जौहर विश्वविद्यालय को लेकर हो रहे मुकदमों के लिये।

आज़म खां चाहते तो अपने और अपने परिवार के लिये संपत्ति बना सकते थे, आलीशान बंगला बना सकते थे, फैक्ट्री और बिल्डिंग खड़ी कर सकते थे पर उन्होंने यूनिवर्सिटी बनाई, स्वतंत्रता सेनानी मौलाना अली जौहर के नाम पर।
मौलाना अली जौहर वही शख्स थे जिन्होंने “राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस” में अंग्रजों से कहा था कि ” हमें आजादी दे दो या फिर कब्र के लिए दो गज जमीन दे दो”
जौहर यूनिवर्सिटी में सभी धर्मों के बच्चे पढ़ते है, अस्पताल में सभी धर्म के लोगों का इलाज़ होता है।

आज़म खां ने शिक्षा के व्यवसायीकरण के दौर में भी अंग्रेज़ी मीडियम की सस्ती शिक्षा के स्कूल खोलें हैं जहां रिक्शा चलाने वाले, मजदूरों के बच्चों, अनाथ बच्चों को सब्सिडाइज़ यानि लगभग बिल्कुल मुफ़्त शिक्षा मिल रही है।
पूरे देश को ऐसे यूनिवर्सिटी, स्कूल पर गर्व के साथ इस मॉडल को अपनाया जाना चाहिये ताकि वंचित तबकों तक शिक्षा पहुंच सके, जैसे आज़म खां रामपुर में दे रहे हैं।

सबसे ज़्यादा महिला सांसदों वाली लोकसभा में चिन्मयानंद के खिलाफ़ कोई शोर नहीं हैः ऋचा सिंह

पर मौजूदा सरकार ने जिस तरह से आज़म खान की बनायी जौहर यूनिवर्सिटी को, स्कूलों को अपनी नफ़रत और राजनीतिक रंजिश के चलते निशाना बनाया है एयर हज़ारों बच्चों और आने वाली पीढ़ियों के भविष्य दांव पर लग गया।
सत्ता की बेचारगी उसकी दूषित मानसिकता का अंदाज़ा पूरे देश को उस वक़्त करा दिया गया जब 9 बार के जनता से चुने हुए विधायक, उच्च सदन राज्यसभा के सदस्य रहे और वर्तमान सांसद के ऊपर बकरी चोरी और किताब चोरी के मुक़दमे लिखे गये। बकरी चोरी के मुक़दमे ने सरकार की नीयत पर से पर्दा उठा दिया।
चिन्मयानंद पर चुप्पी और बकरी चोरी पर मुक़दमे स्पष्ट कर दिया कि जब एक तड़ीपार देश का गृहमंत्री हो जाता है तो वह राजनीति की स्तरहीनता तक देश को पहुंचा देता है।

आजम खां ज़मीन से उठे,एक ग़रीब परिवार से निकल कर अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की छात्र राजनीति से निकले इमरजेंसी के योद्धा हैं, जिन्होंने रामपुर इलाके में नवाबी, ख़ानदानी दबदबे को खत्म करके राजनीति के लोकतांत्रिक चेहरे को मजबूत किया है और एक तर्कशील नेता को जन्म दिया जिसकी राजनीतिक तकरीरें विपक्ष भी सांस रोक कर सुनता है।

(वर्तमान ससंद में आज़म खां जी का पहला भाषण जिसको सुने जाने के सारे रिकार्ड टूट गये सोशल साइट्स पर)

इस मुश्किल दौर में जब देश के तमाम विश्वविद्यालयों पर हमले हो रहे हैं जौहर विश्वविद्यालय को भी सराकर ने अपने निशाने पर ले लिया है, तब अपने बच्चों – युवाओं की हौंसलों को मजबूत करने के लिये आज़म खां जी ने जौहर विश्वविद्यालय के छात्रों के नाम एक खुली चिट्ठी लिखी जिसको पूरे देश को पढ़ना चाहिये, जो कि इस तरह से है


मेरी बात सुनो……|

दिनांक 10 अगस्त 2019

मेरे अज़ीज़ों,

आपके दिलो दिमाग़ में बहुत सारे सवालात होंगे लेकिन मेरा जवाब बस इतना है कि जो लोग समझते हैं सब कुछ मिट जाएगा…… वो सही हो सकते हैं लेकिन एक इतिहास लिख गया, एक तारीख़ क़ायम हो गयी कि हड्डी-गोश्त से बना हुआ एक इंसान गली का बाशिंदा हुकूमतों की मुखालफतों के बावजूद एक अज़ीम उल शान इदारा University और नौनिहालों के लिए A series of high class schools क़ायम करने में कामयाब हो सका | उसने न “सर” का ख़िताब हासिल किया और ना ही “खान बहादुर ” का |

जिनको ख़ुद भी मिट जाना है उन्हें समझ लेना चाहिए कि इल्म की रौशन शमां को गुल करने का हर मददगार जलकर ख़ाक हो जायेगा | वो इस खुशफहमी में ना रहे कि तारीख़ उनको मीर जाफ़र या मीर सादिक के नाम से याद रखेगी, नाली के गंदे ग़लीज़ कीड़ों का कोई नाम नहीं होता फ़क़त पहचान होती है जो रहती दुनियां तक बदबू देती रहेगी |

यूनिवर्सिटी के स्टाफ़ और अपने तुलबा और तलाबात से कहना चाहता हूँ कि मैंने इंसानी बिरादरी की जो कराहती हुयी तस्वीर देखी है उसकी दुखन मेरे दुखों से कहीं ज़्यादा है | घड़ी कठिन हो सकती है लेकिन बच्चों सच यह भी है कि “सच को मनवाने में देर हो सकती है शकिस्त नहीं हो सकती ” |

इम्तिहान की इस घड़ी में जिसने जितना साथ दिया हमें उसका उससे ज़्यादा शुक्रगुज़ार होना चाहिए, जिन्होंने साथ नहीं दिया या जो डर गए उन पर भी हमको आगे भरोसा करना चाहिए लेकिन हाँ अगर किसी की ग़द्दारी का सबूत आपको मिल जाये तो फिर उसे कभी माफ़ नहीं करना चाहिए क्योंकि यह किसी एक का नहीं आने वाली अनगिनत नस्लों के असासे का नुक़सान होगा |

जिनको पढ़ाना है उनसे मेरी अपील है कि वो अपनी सलाहियतों और मेहनतों को और बढ़ा दें कि इतिहास नया अध्याय लिख सकें और जिनको पढ़ना है उनसे कहना चाहूंगा …….. तुम्हारे लिए मैंने जो कुछ तैयार किया था उस पर चंगेज़ी हमला हो गया……. गुज़रे कल में इल्म के बड़े-बड़े खज़ाने लुटे और जलाये गये यहाँ तक कि दरया का पानी काला हो गया मगर इल्म का समन्दर ना कोई रोक पाया ना कोई रोक पायेगा |

बच्चों आप जानते हो इसे “गहवारा ए इल्मो अदब ” कहा है | मैं तुम्हे अपने दर्द, तकलीफ़ों, नामुरादियों और आंसूओं का वास्ता देता हूँ……. इसे मेरी बेबसी नहीं हिदायत के तौर पर मान लेना ………….. पूरे नज़्मों ज़ब्त के साथ और उसी जुर्रत के साथ जो आप सब ने दिखायी है दरअसल वही हम सबकी ताक़त है और आख़िरकार जीत भी उसी की होना है |

क्या आपको नहीं मालूम कि इस सबको यहाँ तक लाने में मैंने आग के कितने दरया पार किये हैं | बच्चों, आप सब देखते हो मैं सबके सामने चलता हूँ, बोलता हूँ , मिलता हूँ मगर मेरी हर घड़ी हर लम्हा कर्बनाक अहसास से लबरेज़ होता है |

मैंने ज़माने की नफ़रतों, हिक़ारतों और मज़ालिम का बड़ी हिम्मत से अब तक मुक़ाबला किया है……… ज़माने ने, हुकूमतों ने मुझे भू-माफ़िया तक साबित कर दिया ………… तुम्हे और तुम्हारे आने वाले क़ाफलों के लिए मैंने “ किताब चोर ” के इलज़ाम को अपनी ज़िन्दगी का सबसे बड़ा तमग़ा मान लिया | दुआ करो ये दोनों अल्फ़ाज़ मेरी मग़फिरत का सबब बन जाये ( आमीन ) |

ख़ुद मज़बूत रहो, ख़ुद में मज़बूत रहो……… अपनी तादाद को बढ़ाओ यूनिवर्सिटी के लिए मेरे फ़रज़न्दों तुमसे बेहतर Ambassador भला कौन हो सकता है | अपने-अपने इलाक़ों से अपनों को पुकारो, उन्हें दावत दो, शामिल करो क्योंकि तुहारी तादाद, तुम्हारी फ़िकरी, उसूली और इन्फेरादी ताक़त होगी |

मैं ठीक हूँ और तुम सब पर और हालात पर मेरी नज़र है |

मज़हब,धर्म और ज़ात इस इदारे की पहचान नहीं है इसका मक़सद “ सबको प्यार और सबसे प्यार करना है ” | इस गाँठ को मज़बूती से गिरह बंद कर लेना ज़िन्दगी के बाक़ी सफ़र में भी यह काम आयेगी | नफ़रतों के सौदागर इसी के रास्ते मुल्क की तबाही का इंतज़ाम कर रहे हैं सबको इससे होशियार रहना होगा |

हम जल्द सब एक साथ होंगे जब तक जियेंगे ज़िंदगी की चुनौतियों से जूझते रहेंगे मगर हार नहीं मानेंगे क्योंकि अपनी मंजिल के बारे में हमें मालूम है और उसे हासिल करना है | आज दरिया में तुग़यानी है कल नहीं होगी |

लोग आते और जाते रहेंगे मगर समंदर के किनारे कोई ना कोई यक़ीनन खड़ा मिलेगा जो भटके हुए जहाज़ को इशारा देगा कि उसे डूबना नहीं है, भटकना नहीं है बस कुछ वक़्त के लिए इस अंधेरी, ख़तरनाक और तुफ़ानी रात में एक नन्ही सी लौ के सहारे उसे किनारे लग जाना है …….फिर सुबह होगी,तूफ़ान गुज़र चुका होगा, लहरे दम तोड़ चुकी होंगी और जहाज़ सूरज की किरणों के साथ अपनी मंजिल की तरफ गामज़न हो जाएगा | ज़रा अपनी नज़रों से देखो तो मैंने जब इस यूनिवर्सिटी का संग ए बुनियाद रखवाया था तो तुम्हे क्या संदेश दिया था, आसमान छूती हुयी मज़बूत शमां तुम्हारे इरादों की हमेशा नुमाइंदगी करती रहेगी जाओ वहां जा कर उसे सैल्यूट करो |

अब आप सबको ख़ुद को “ जौहरी ” साबित करना है शायद क़ुदरत की जानिब से ये इम्तिहान इसीलिए था कि आज से मेरी ज़िंदा आँखें ये मंज़र देख सकें कि मेरे हर बच्चे और बच्ची ने अपने नाम के साथ “ जौहरी ” “ JAUHARI” लफ्ज़ लगा लिया है | जो मौजूद हैं उन्होंने और जो फ़ारिग हो चुके हैं उन्होंने भी |

आप देखोगे जब इतनी बड़ी तादाद में जौहरी दुनियां भर में फ़ैल जायेंगे तो मेरे जीते जी और मेरे बाद भी तुम सब की तरफ़ से मेरे लिए इससे बेहतर “खिराज ए अक़ीदत ” और क्या होगी |

रहती दुनियां तक सलामत रहो और मालिक के हुज़ूर खैर की दुआ करो |

ज़ुल्म भी मिटेगा और ज़ालिम भी बाक़ी वही रहेगा जिसके लिए सब का एलान है “एक तू ही सच्चा और तेरा ही नाम सच्चा ” |

खैर के साथ कल की तलाश में ……….

सबका अपना

मोहम्मद आज़म खां ”
(सत्यापित प्रति)

ये ख़त इस बात का गवाह है कि एक आम इंसान ने शिक्षा के लिये एक बेहतरीन मंदिर बहुत मेहनत और मुश्किलों से खड़ा किया और आज कहीं ज़्यादा मुश्किलों से उस शिक्षा के मंदिर को बचाने की लड़ाई लड़ रहा है।
आज़म खां सिर्फ एक नेता नहीं बल्कि आने वाली तारीख़ में शिक्षा जगत के योद्धा के नाम से जाने जायेंगे जिन्हें सिर्फ यूनिवर्सिटी बनाने के लिये ही नहीं बल्कि उसे सरकार से बचाने के लिये भी एक बड़ी लड़ाई लड़नी पड़ी।

सरकार सत्ता का दुरुपयोग करते हुए चाहे जितने ज़ुल्म कर ले पर जीत शिक्षा के मंदिर की ही होगी।
फिर ये तो रामपुर है मौलाना अली जौहर – महात्मा गाँधी और #आज़मखां जी का रामपुर अंग्रजों से लेकर नवाबों तक ज़ुल्म के खिलाफ लड़ना और जीतना रामपुर की मिट्टी में है।
आप सबसे अपील है एक शिक्षा के मंदिर “जौहर विश्वविद्यालय” को बचाने की लड़ाई में आप सब साथ दें।

(ऋचा सिंह समाजवादी पार्टी की युवा नेता हैं। वो इलाहाबाद विश्विद्यालय की पहली महिला छात्रसंघ अध्यक्ष रह चुकी हैं, ये लेख उनके अनुभवों और निजी विचारों पर आधारित हैं )

 

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