कृष्णकांत

इंसान को मरने की इजाजत नहीं है, मरने वाले को मरते वक्त चीखने की इजाजत नहीं है, लाशों को दफन होने की इजाजत नहीं है. मरने के बाद अगर आप गंगा किनारे दफन किए जाएंगे तो रात के अंधेरे में आपकी कब्र के निशान मिटा दिए जाएंगे. यही रामराज है. यही न्यू इंडिया है. बर्बरता ही इस युग का हासिल है।

एनडीटीवी के कमाल खान ने एक वीडियो ​ट्वीट किया है जिसमें कुछ लोग गंगा किनारे दफन की गई लाशों पर डाले गए कपड़े हटा रहे हैं।

इस वीडियो के साथ कमाल खान ​ने लिखा, “कफन चोर? प्रयागराज में गंगा किनारे क़ब्रों पर से पीली चादरें हटाई जा रही हैं, ताकि फ़ोटो खींचने पर वे पहचानी न जाएं।उन्नाव के बक्सर में भी पुलिस क़ब्रों से पीली चादरें उठा ले गयी थी।”

दैनिक भास्कर ने लिखा है, “प्रयागराज के श्रृंगवेरपुर घाट पर रविवार रात को प्रशासन ने रातों-रात जेसीबी और मजदूर लगाकर शवों के निशान मिटा डाले।

घाट पर लोगों ने अपने प्रियजनों के शवों की पहचान के लिए जो बांस और चुनरियों से निशान बनाए थे, वो अब पूरी तरह गायब हैं। अब श्मशान घाट के एक किलोमीटर दायरे में सिर्फ बालू ही बालू नजर आ रही है।

प्रशासन ने ये काम इतने गुपचुप तरीके से करवाया कि स्थानीय लोगों को भी भनक नहीं लगी। सुबह तक प्रशासनिक अमला वहां डेरा डाले रहा।

लेकिन जब भास्कर ने अधिकारियों से इस बारे में पूछा तो उन्होंने कुछ भी बोलने से मना कर दिया। उलटा भास्कर रिपोर्टर से पूछ लिया कि किसने शवों की पहचान मिटायी है?

प्रयागराज के एसपी गंगापर धवल जायसवाल का कहना है कि श्रृंगवेरपुर में शवों के निशान कैसे और किसने हटवाए, इसकी जांच की जाएगी। जो दोषी होगा उसके खिलाफ कार्रवाई होगी।

श्रृंगवेरपुर घाट पर पुरोहित का काम करने वाले ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि शवों के निशान मिटाने के लिए करीब दो दर्जन मजदूरों को लगाया गया था।

इसके अलावा दो जेसीबी भी लगाई गई थीं। जो लकड़ी, बांस और कपड़े, चुनरी और रामनामी शवों से उठाई गईं, उन्हें ट्रॉली में भरकर कहीं और ले जाया गया। बाद में उन्हें जला दिया गया।

घाट पर बने मंदिरों में रहने वाले पुरोहित जब सुबह गंगा स्नान को जाने लगे तो देखा पूरा मैदान साफ था।

शवों पर से निशान गायब थे। शवदाह का काम करने वाले एक व्यक्ति ने बताया कि शवों की पहचान मिटाने के पीछे प्रशासन की क्या मंशा है, यह तो वही जाने। लेकिन यह ठीक नहीं हुआ।

कब्र के निशान मिटा देने के बाद हर ​तरफ सिर्फ ऊबड़-खाबड़ रेत है. अब आप कह सकते हैं कि कहीं कोई नहीं मरा है.

(यह लेख पत्रकार कृष्णकांत की फेसबुक वॉल से साभार लिया गया है)

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