हरियाणा का एक जिला है, चरखी दादरी। इमरजेंसी के साल 1975 में एक नौजवान अपने किराए के मकान में पुलिस के डर के मारे अंदर वाली कोठरी में सो रहा था । घर पर सिर्फ मां ही थी , पिताजी खुद पुलिस के डर के मारे कई दिनों से अंडरग्राउंड थे।
रात को अचानक घर पर पुलिस आ पहुंची। किवाड़ों को जोर जोर से पीटा जाने लगा । कुछ वक्त के लिये मां और बेटा सहम गए थे। पुलिस उस नौजवान को उठाने के लिए आई थी ताकि अपने लड़के की खबर पाकर उसका बाप भी सरेंडर कर दे।
मां ने भरे हुए मन से बेटे को पड़ोस में रह रही विधवा चाची के घर में छुप जाने को कहा। छत से होते हुए ये नौजवान विधवा चाची के यहां छुपने में कामयाब रहा । उस रात पुलिस खाली हाथ वापस चली गयी।
नौजवान उस साल अक्टूबर तक पुलिस से बचकर इधर उधर भागता रहा लेकिन अक्टूबर में पकड़ा गया और दिसंबर तक जेल में रहा। इमरजेंसी के दौरान पढ़ाई के दो साल खराब किये जिससे उसका डॉक्टर बनने का सपना भी बागड़ के रेत में खाक हो गया था। हालात बदले , इमरजेंसी हटी और नौजवान जेल से बाहर आया।
साल 1979 का दौर था कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी में यूथ फेस्टिवल में वाद-विवाद प्रतियोगिता चल रही थी। उस मौके पर मौजूद कार्यक्रम के मुख्यातिथि और सूबे के मंत्री बीरेंदर सिंह एक छात्र के भाषण को सुनकर झुंझला उठे और पुलिस वालों को छात्र को बाहर करने के लिए चिल्लाने लगे। दरअसल उस छात्र ने मंत्री की छात्रों को राजनीति में हिस्सा न लेने वाले बयान का खंडन करते हुए अपनी बात जमा ठेठ हरियाणवी बोली में कह दी थी।
वो कह रहा था कि ‘मानलयो हरियाणा सूबा एक बस है और उस बस मैं किसान , मज़दूर , नेता ,लोग -लुगाई , छात्र सब बैठे हैं। अर न्यू कह दिया जावे की बस चाले जब पढनीये बाळक हिलेंगे नही बाकी सब हिल ढुल सकें हैं। अर यो आगै बैठ्या मंत्री भी न्यूए कहन लाग रहया है के सब राजनीति मै हिस्सा ले सकें हैं बस छात्र नही ‘ बस इतनी सी बात सुनते ही मंत्री जी आगबबूला हो गए । पर नौजवान को पुलिस पकड़ती, इससे पहले वहां से भाग निकला। उस नौजवान का नाम था प्रदीप कासनी।
यही प्रदीप कासनी बाद में 1980 में हरियाणा में अफसर बने और 1997 में आइएएस अधिकारी। प्रदीप कासनी 28 फरवरी 2018 को रिटायर हो चुके हैं। पिछले 6 महीने की तनख्वाह उन्हें नही दी गयी है ।
अपनी 33 साल की नौकरी में 71 बार उन्हें तबादले की मार झेलनी पड़ी। रेवाड़ी जिले के कस्बे बावल के आसपास वाले गांव के लोग उनकी 3700 एकड़ जमीन को सस्ते दामों पर सरकार के अधिग्रहण से बचाने वाले प्रदीप कासनी का आज भी राग अलापते मिलते हैं। खैर हरियाणा में ईमानदारी का पर्यायवाची रहे कासनी आजकल खुद अपनी छे महीने की तनख्वाह के लिए सरकार के खिलाफ कोर्ट में खड़े हैं।
इसी बीच मार्च 2018 के शुरू होते ही उनके राजनीति में जाने की चर्चाएं अब जोर पकड़ रही हैं। बीच-बीच मे उनके इनेलो और भाजपा में जाने की हवाएं उड़ी हैं। जिनका उन्होंने खण्डन भी किया है । उनका कहना है कि ‘मैं गरीब , किसान और मज़दूरों के हितों के लिए राजनीति में जाऊंगा जरूर पर अभी राजैनतिक पार्टियों में शामिल होने का कोई प्लान नही है’।
यह अभी तक का प्रदीप कासनी की ज़िन्दगी के दो अलग अलग किरदारों का सफर रहा है जिसे लोग ईमानदार और साफ सुथरा बताते हैं। राजनैतिक सफर अभी बाकी है , लोग उनके इस सफर को भी देखना चाहते हैं। ज़िन्दगी के इस तीसरे किरदार में अभी उनकी असली परीक्षा होनी बाकी है।