एससी/एसटी एक्ट में हुए बदलाव को लेकर देशभर में प्रदर्शन हो रहे हैं। दलित सड़कों पर उतरकर मोदी सरकार से अपने अधिकारों की रक्षा की मांग कर रहे हैं। लेकिन सरकार दलितों की मांग सुनने के बजाए उनपर लाठियां बरसा रही है। अबतक इस प्रदर्शन में कई जानें भी जा चुकी हैं।

विपक्ष प्रदर्शन के दौरान हो रही हिंसा के लिए बीजेपी को जिम्मेदार ठहरा रहा है। बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने कहा कि बीजेपी की मानसिकता जातिवादी है, बीजेपी सरकारी शक्तियों और संसाधनों के दमपर इसे बढ़ावा दे रही है।

वहीं, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी बीजेपी पर प्रदर्शन के दौरान हिंसा भड़काने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि आरएसएस/बीजेपी के DNA में दलितों को भारतीय समाज के सबसे निचले पायदान पर रखना है। जो इस सोच को चुनौती देता है उसे वे हिंसा से दबाते हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शासनकाल में यह कोई पहला मामला नहीं है, जब अपनी मांगों को लोकर बड़ी तादाद में लोग सड़कों पर उतरे हैं। किसानों और छात्रों के प्रदर्शन तो आए दिन देखने को मिलते हैं और इन  प्रदर्शनों में सरकार के इशारे पर पुलिस की बर्रबरता की ख़बरें भी आम हैं।

प्रदर्शन करने वालों की फेहरिस्त में देश के नौजवान बेरोज़गरों और सरकार के टैक्स सिस्टम से परेशान व्यापारियों का नाम भी शामिल है। बीएड टीईटी अभ्यर्थी हों या फ़िर बीपीएड टीईटी अभ्यर्थी सभी बीजेपी सरकार के ख़िलाफ प्रदर्शन करते नज़र आ रहे हैं। व्यापारियों का बड़ा तबका भी मोदी सरकार से ज़्यादा खुश नहीं। नोटबंदी और जीएसटी की मार झेल रहे व्यारियों ने भी सड़कों पर उतरकर बड़े प्रदर्शन किए हैं।

देशभर में सरकार के विरोध में हो रहे यह प्रदर्शन पीएम मोदी के उस दावे पर सवाल ज़रूर खड़े करते हैं, जिसमें उन्होंने ख़ुद को देश का चौकीदार बताया था। पीएम मोदी ने कहा था कि उनकी चौकीदारी में देश आराम से सो सकता है। लेकिन मौजूदा हालात को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि देश नहीं चौकीदार सो रहा है।

लेखकः आसिफ़ रज़ा

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