बाबा साहेब भीम राव अंबेडकर के राजनीतिक वारिस मान्यवर कांशीराम की आज 84वीं जयंती है। 15 मार्च, 1934 को पंजाब के रोपड़ जिले के पिरथीपुर बंगा गांव में कांशीराम का जन्म हुआ था। कांशीराम ने अपना पूरा जीवन बहुजन समाज को एक धागे में पिरोने में लगा दिया।

बहुजन समाज के हित के लिए प्रण लेने वाले कांशीराम ने अपना घर-बार, मां-बाप, सबका मोह छोड़ दिया। बहुजन समाज जिस उत्तर प्रदेश में अपनी सरकार बनाने का जश्न मना चुका है, उसको स्थापित करने का काम कांशीराम ने ही किया। आज उनके जन्मदिवस पर जानिए क्यों भारतीय राजनीति के मठाधीशों से अलग थे ‘मान्यवर कांशीराम’

भारतीय इतिसाह के सर्वश्रेष्ठ नारे के जनक कांशीराम

अपने तकरीबन 20 सालों के राजनीतिक करियर में कांशीराम ने उत्तर प्रदेश और उसके माध्यम से भारत की राजनीति में उथल-पुथल मचा दी। उनके नारे कमाल के होते थे। अपने राजनीतिक नारों के माध्यम से वो जहां विरोधियों पर सीधा वार करते थे, तो वहीं बहुजन समाज में उत्साह भर देते थे। 1989 के चुनाव में कांशीराम जी के नेतृत्व में बहुजन समाज पार्टी द्वारा दिया नारा सवर्णों पर सीधा हमला था। जिसकी जितनी संख्या भारी, उतनी उसकी भागीदारी’ को न सिर्फ कांशीराम का बल्कि भारतीय इतिहास का सर्वश्रेष्ठ नारा कहा जाता हैं।

ड्रेस कोड के मामले में भी निराले नेता थे कांशीराम

भारतीय राजनीति में नेताओं की पोशाक हमेशा से खद्दर रहा है। तो सफेद कुर्ता-पायजामे या धोती-कुर्ते को नेताओं की पहचान माना गया है। छुटभैय्ये नेताओं से लेकर देश के मंत्री तक इसे ही धारण किए फिरते हैं। लेकिन कांशीराम ने भारतीय राजनीति के इस मिथक को भी तोड़ दिया। इस मामले में वो बाबासाहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर के सिद्धांतों पर चलते दिखे। डॉ. अंबेडकर ने भी कभी इस परंपरागत पोशाक को अपने सार्वजनिक जीवन में नहीं अपनाया। तो मान्यवर कांशीराम का ड्रेस कोड भी आखिरी वक्त तक शर्ट-पैंट ही बना रहा।

वोट के साथ नोट का अनोखा सिद्धांत

कांशीराम ने ‘एक नोट एक वोट’ का अनोखा सिद्धांत अपनाया। भारतीय राजनीति में जब बूथ कैंप्चरिंग और पैसे से वोट खरीदने का चलन जोरों पर था तो कांशीराम जी ने वोटरों को पैसा देने की बजाय उनसे पैसे मांगकर राजनीतिक विश्लेषकों को अचंभित कर दिया। लोगों ने भी कहा कि उल्टा नेता है। सामने वाला वोट के लिए पैसे देता है, और यह वोट के साथ पैसे भी मांग रहा है। लेकिन कांशीराम की यही साफगोई काम कर गई। इस सिद्धांत ने लोगों को आकर्षित किया। कांशीराम जी को जितने नोट मिले, वोट उससे तीन गुने मिले।

(इनपुट- अशोक दास)

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