श्याम मीरा सिंह

बंगाल (Bengal) में आरएसएस कार्यकर्ता की हत्या का मामला सुलझ गया है. सीआईडी ने इस मामले की जांच में कुछ खुलासे किए हैं जिनसे ये कुछ बातें सामने आई हैं-

1. सीआईडी को बंधु पाल (Bandhu Prakash Pal) के यहां एक डायरी मिली जिसमें उत्पल बेहारा नाम के एक शख्स के साथ लेनदेन का एक मामला दर्ज था. सीआईडी को इस शख्स पर शक हुआ और गिरफ्तार कर लिया.

2. कड़ाई से पूछताछ में ये साफ हुआ कि यह राजनीतिक हत्या नहीं है बल्कि ये निजी मामले में की गई हत्या है

3. मरने वाले बन्धु पाल एक फिक्स डिपॉजिट स्कीम चलाते थे जो चिटफंड की तरह है. ये एकतरह से फर्जी स्कीम मालूम पड़ती है। जिसमें वह सामान्य लोगों से पैसे लेकर फिक्स डिपॉजिट करवाते थे. जिसमें अधिकतर आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के एकाउंट खुलवाये गए.

4.ऐसे ही एक मामले में उन्होंने अपने गांव के एक पड़ोसी उत्पल बेहारा से पैसे लिए थे. जिसे बाद में फिक्स डिपॉजिट तोड़ने पर 48 हजार करके देने थे. कुछ समय पहले ही बन्धु अपने गांव शाहपुर से जियागंज में शिफ्ट हो गए.

5.एक दिन उत्पल बेहारा, बन्धु पाल के घर गया, घर जाते समय पड़ोसियों ने भी उसे देखा था. यहीं उसका बंधु पाल से झगड़ा हो गया. और उसी समय उत्पल बेहारा ने बन्धुपाल और उसकी गर्भवती पत्नी और एक बच्चे की हत्या कर दी.

इस पूरी जांच के बाद ये तो साफ है कि ये कोई राजनीतिक हत्या नहीं थी, कि बंधु आरएसएस से थे इसलिए उनकी हत्या कर दी गई. बन्धु आरएसएस (RSS) से हैं ये बात ही अपने आप मे एक राजनीतिक अफवाह है.

बन्धु के घरवालों ने बताया है कि बन्धु आरएसएस से थे ही नहीं. यहीं पर ध्यान देने की जरूरत है कि किस तरह नैरेटिव तैयार किए जाते हैं. दरअसल ऐसे मामलों में राजनीतिक लाभ लेने के लिए कोई अतिरिक्त मेहनत नहीं करनी पड़ती. यदि एक आदमी की हत्या हुई हो और कैसे भी ये दिखा दिया जाए कि वो आरएसएस से है, इसका सीधा-सीधा लाभ आरएसएस और भाजपा को मिलना तय है.

ऐसी किसी भी मौत का सीधा-सीधा हिंदी ट्रांसलेशन “वोट” होता है. इस पूरे मामले में भी एक व्यक्ति की हत्या के लिए “न्याय” मांगने से ज्यादा जोर आरएसएस से सम्बंध दिखाने पर था। पिछले एक हफ्ते से एक नैरेटिव तैयार किया जा रहा है कि मरने वाला हिन्दू है, हिन्दू है, हिन्दू है, इसलिए कोई आवाज नहीं उठा रहा. ये अलग बात है कि पूरे हफ्ते ये सुर्खियों में रहा. ऐसा सेनेरियों बनाने की कोशिश की गई कि अगर मरने वाला हिन्दू है तो मारने वाला तो मुस्लमान ही होगा.

दरअसल ये लोग सरकार के लिए एक शील्ड का, एक कवच का काम करते हैं. हमारे सवाल शासक से होते हैं, लेकिन इनके सवाल सरकार से नहीं बल्कि नागरिकों से होते हैं, आप किसी जघन्य बलात्कार के खिलाफ सरकार से प्रश्न करेंगे ये लोग आपसे सवाल करेंगे. इनका काम न्याय मांगना नहीं, बल्कि बलात्कार के खिलाफ बलात्कार को खड़ा करना, हत्या के खिलाफ हत्या को खड़ा करना होता है. ताकि सब चुप हो जाएं, कोई सवाल न पूछे, केवल एक जाति का राज रहे. नैरेटिव ऐसे ही तैयार किए जाते हैं. ये लोग वैचारिक ठग हैं, जो आपके मन मस्तिष्क को नियंत्रित करते हैं.

मुसलमान आपका दुश्मन नहीं है. दुश्मन वह है जो आपको भ्रमित करके आपके अंगूठे को नियंत्रित करना चाहता है जिस अंगूठे से आप वोट देते हैं, जिससे आप तय करते हैं कि आपको, आपके राज्य को, आपके कस्बे को, फैक्ट्री को, स्कूल को, खेतों को कौन नियंत्रित करेगा. आपके अंगूठे पर नियंत्रण का रास्ता आपके मस्तिष्क से होकर गुजरता है. इसलिए आपके मस्तिष्क को नियंत्रित किया जाता. मस्तिष्क पर नियंत्रण स्थापित करने के लिए ही ऐसे नैरेटिव तैयार किए जाते हैं.

(ये लेख श्याम मीरा सिंह के फेसबुक वॉल से साभार लिया गया है ।)

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