16 दिसंबर 2012 और 10 जनवरी 2018 ये दो ऐसी तारीखें हैं जिसे हिंदुस्तान कभी नहीं भुला पाएगा। ये तारीखें इतिहास के काले पन्नों में ‘बर्बरता की हदें पार करने वाली घटना’ के रूप में दर्ज हो चुकी हैं।

16 दिसंबर 2012 को दिल्ली की सड़कों पर निर्भया के साथ निर्दयता से बलात्कार किया गया था और 10 जनवरी 2018 को उधमपुर में आसिफा के साथ सामूहिक बलात्कार हुआ है।

निर्भया और आसिफा के साथ हुई घटना की परिस्थितियां भले अलग हों, लेकिन दोनों के साथ हुई घटना की बर्बरता एक सी है। बस फर्क है तो दोनों की उम्र में है।

इन पांच-छः सालों में देख का निज़ाम बदल गया, हिंदुस्तान मंगल पर पहुँच गया लेकिन महिलाओं की सुरक्षा में “बहुत हुआ नारी पर वार, अबकी बार फलां सरकार” जैसे नारे देने वालों की सरकार में बेटियों की हालत पहले से भी खराब हुई है। आसिफा की चार्जशीट आने पर प्रधानसेवक 6 के बाद अपनी प्रतिक्रिया देते हैं।

वरना देश के प्रधानसेवक ऐसे हैं कि विदेश में आंधी आने से पेड़ गिर जाने पर भी ट्वीट करके दुःख जता देते हैं।

बता दें कि निर्भया कांड में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने घटना पर ट्वीट करते हुए कार्यवाई की और आरोपियों को गिरफ्तार किया था। लेकिन आसिफा के केस में बीजेपी से जुड़े संगठनों ने आरोपियों के बचाने के लिए तिरंगा यात्रा निकालकर नारे लगाए।

गलती करके जो उससे सीख ले वही समझदार है। लेकिन मौजूदा सरकार गलती करके उसपर गलतियाँ कर रही है। कहीं अपने विधायक को बचाया जा रहा है तो कहीं आरोपियों के लिए नारे लगाए जा रहे हैं। अगर आसिफा स्वर्ग में जाकर निर्भया से मिलेगी और निर्भया पूछेगी कि “क्या हाल है देश का” तो आसिफा का जवाब होगा “दीदी कुछ नहीं बदला।”

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