दो साल से दालें नहीं बिकी हैं बिहार में, नेता दंगा दंगा खेल रहा है

पब्लिक न्यूज़ रूम के लिए बिहार से दाल की खेती करने वाले एक किसान ने दाम को लेकर सूचना भेजी है। नौजवान रौशन के पिता दाल की खेती करते हैं और पेशे से इंजीनियर ये नौजवान सिविल सेवा की परीक्षा की तैयारी कर रहा है। नौकरी भी कर रहा है। रौशन का कहना है कि बिहार के टाल क्षेत्र में जहां सिर्फ दाल की खेती होती है, वहां दो साल से किसानों की दालें नहीं बिकी हैं।

रौशन ने लिखा है कि टाल क्षेत्र वह क्षेत्र है जहां नदियां अपना पानी व मिट्टी लाती है और मौनसून के लौटने के साथ नदी का पानी भी लौट जाती है। वहां एक ही फसल होती है। यह क्षेत्र बिहार के पटना ,फतूहा,बख्तियारपुर ,बाढ ,मोकामा ,बडहिया ,हाथीदा ,लक्खिसराय ,शेखपुरा ,बडबीघा ,नवादा ,नालंदा का क्षेत्र है। यहां चना ,मसूर ,खेसारी का उत्पादन होता है।

राज्य सरकार के पास दाल खरीदने की कोई प्रक्रिया नहीं है। किसान चाहते हैं कि मैं इसे दिखा कर या लिख कर राज्य सरकार पर दबाव बनाऊं। पर जो सरकार दंगे को लेकर दबाव में नहीं है, वह दाल के दाम की चिन्ता क्यों करेगी। आगे किसान के पत्र का हिस्सा आप पढ़ सकते हैं।

“ मैं बिहार के टाल क्षेत्र से किसान परिवार से हूं।2016 की नोटबंदी के समय किसानों ने उच्च मूल्य पर चना व मसूर के बीज खरीदे(लगभग 12000रूपये प्रति क्विंटल) । उस समय सरकार ने मसूर का 4250 रूपये प्रति क्विंटल न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित किया। किसानो को लगा दाल उत्पादन का उचित लाभ व प्रतिफल मिलेगा। दाल की पैदावार भारत के दाल खपत व मांग के अनुरूप रही तथा फसल उत्पादन अच्छा रहा।

इधर सरकार ने हाल के वर्षों में शून्य आयात शुल्क पर इतना दाल आयात कर लिया कि अब भारत के किसान (खासकर बिहार ) मे दाल कौडियों के भाव भी नहीं है। दाल की खरीद न्यूनतम समर्थन मूल्य पर पूरे बिहार में कहीं भी नहीं रही।बिहार के अंदर दाल खरीद को लेकर राज्य सरकार या केंद्र सरकार के पास कोई मैकेनिज्म नहीं है। बिहार में संपूर्ण टाल क्षेत्र के किसानो के दाल दो साल से रखे हैं और कोई भी न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदने को तैयार नहीं है। राज्य सरकार दाल खरीदने से साफ इन्कार कर रही है।

मूल समस्या यह है कि कृषि मजदूरों ने जिनके अपने खेत नहीं होते ,दस हजार रूपये प्रति बिघा पट्टा पर किराये पर लेकर खेत बोया है। हालत यह है कि कृषि मजदूर अपना घर भी बेच दें तब भी पट्टे की रकम नहीं पूरा कर सकता। छोटे कृषक व कृषि मजदूर दाल के एम एस पी नहीं मिलने के कारण कर्ज के जाल में भयावह रूप से फंस गये है।

कोई रास्ता नहीं है आत्महत्या के सिवाय या फिर पलायन करके दिल्ली, मुम्बई व सूरत चले जाएं। भारत सरकार द्वारा जारी न्यूनतम समर्थन मूल्य सिर्फ पंजाब ,हरियाणा ,महाराष्ट्र व पश्चिमी यूपी के गेहूं व धान तक सीमित है। जिस किसान.के दो दो साल से फसल नहीं बिके हो ,हालत कल्पना के परे है। सर जी बिहार के टाल क्षेत्र में साल में मात्र एक फसल होते हैं और दो साल से फसल नहीं बिके हैं। आप समस्या की गंभीरता समझ सकते हैं।“

फिर भी बिहार में दंगों के लिए लोग कहां से मिल जा रहे हैं। छात्रों की पढ़ाई और नौकरी नहीं है। किसान बिना दाम के भटक रहा है। तो दंगा कर कौन रहा है? क्या सिर्फ करवाने वाले की टोली बिहार को जला रही है? किसान ने बताया कि व्यापारी मसूर का 30 रूपये किलो से अधिक नहीं दे रहे जबकि बाजार में मसूर दाल 60 से 70 रूपये प्रति किलो है।

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