प्रशांत निहाल

महामना रामस्वरुप वर्मा अमर रहें!

जिसमें समता की चाह नहीं, वह बढ़िया इन्सान नहीं
समता बिना समाज नहीं, बिन समाज जनराज नहीं।

ये वर्मा जी का मशहूर नारा था l इस नारे से पता चलता है वर्मा जी कितने समतावादी इंसान थेl आज महामना श्री रामस्वरूप वर्मा की पुण्यतिथि है l उनका जन्म उत्तर प्रदेश के कानपुर के गौरी करन गाँव में 22 अगस्त 1923 को साधारण किसान परिवार में हुआ I उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालाय से MA और आगरा विश्विद्यालय से LLB की डिग्री प्राप्त की l वे लोकप्रिय समाजवादी नेता हुए, कई बार विधायक चुने गए, मंत्री भी रहे, पर बिहार और उत्तर प्रदेश में उनकी पहचान एक मानववादी और तर्कवादी की रही है।

रामस्वरुप वर्मा ब्राह्मणवाद को भारतीय समाज में व्याप्त विषमता की जड़ मानते थे। वे कहा करते थे कि ब्राह्मणवाद के रहते मानववाद आना असंभव है और बिना मानववाद के जाति-पाति की दीवारें टूटना असंभव है और बिना जाति-पाति की दीवारें टूटे सामाजिक समता नहीं आ सकती। सामाजिक चेतना और जागृति पैदा करने के लिए उन्होंने 1 जून 1968 को सामाजिक संगठन “अर्जक संघ” की स्थापना की l रामस्वरूप वर्मा ने अंबेदकर के विचारों को उत्तर भारत में फैलाने का काम किया l

जब लोहिया ने नारा दिया, “संसोपा ने बांधी गांठ, सौ में पावें पिछड़े साठ”, तब इस नारे ने पिछड़ों को समाजवादी आंदोलन से जुड़ने के लिए प्रेरित किया l बाद में वर्मा जी ने लोहिया से मतभेद होने पे संसोपा छोड़ दिया और शहीद जगदेव प्रसाद के साथ मिल कर 7 अगस्त 1972 को शोषित समाज दल का गठन किया l वर्मा जी ने अर्जक संघ के कार्यकर्ताओं से अनुरोध किया कि पूरे देश में अम्बेदकर के जन्मदिवस 14 April को चेतना दिवस के रूप में मनाएं और 14 April 1978 से 30 April 1978 तक पूरे पखवाड़े रामायण और मनुस्मृति का दहन करें l

रामस्वरूप वर्मा 1967, 1969, 1980, 1989 और 1991 में विधान सभा सदस्य रहे l 1967 की संविद सरकार में वर्मा जी लोहिया की पार्टी संसोपा से जीत कर उत्तर प्रदेश विधान सभा पहुँचे और चौधरी चरण सिंह की सरकार में वित्त मंत्री बनाये गये और उन्होंने मुनाफे का बजट पेश किया l

10 मार्च 1970 को पंडित कमलापति समर्थित चौधरी चरण सिंह की सरकार ने हरिजन तथा समाज कल्याण विभाग से सहायता प्राप्त पुस्तकालयों व छात्रावासों को यह आदेश भेजा कि सन 1968-69 में निदेशालय स्तर पर क्रय की गई पुस्तकों में बाबासाहब अम्बेडकर की किताब “जातिभेद का उच्छेद” और “सम्मान के लिए धर्म परिवर्तन करें” आपत्तिजनक हैं, अतः निदेशालय को पुस्तकें लौटा दी जायें। 12 सितम्बर 1970 को उत्तर प्रदेश सरकार ने एक असाधारण गजट निकालकर अधिसूचना जारी किया कि अंबेडकर की इन दो किताबों को सारे प्रदेश में जब्त कर लिया जाए, तब रामस्वरूप वर्मा ने ललई सिंह यादव से याचिका दायर करवाई।

14 मई 1971 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने माननीय ललई सिंह यादव की याचिका पर सुनवाई करते हुए उत्तर प्रदेश सरकार के फैसले को रद्द कर दिया। महामना ने अंबेडकर की किताब को हर पुस्ताकालय में उपलब्ध कराने की मुहिम चलायी और उपलब्ध कराया l

19 अगस्त 1998 को लखनऊ में महामना का इंतकाल हो गया।

महामना रामस्वरुप वर्मा की स्मृति को नमन!

– प्रशांत निहाल

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