संघ प्रमुख मोहन भागवत के आरक्षण वाले बयान पर सियासत थमने का नाम नहीं ले रही है। कांग्रेस, बहुजन समाज पार्टी और राजद जैसे दलों ने भागवत के बयान पर मोर्चा खोल दिया है।
अब समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता ने भागवत के बयान पर मोदी सरकार समेत संघ पर निशाना साधा है। सुनील सिंह यादव ने कहा कि संघ और सरकार मिलकर मनुवाद का वर्चस्व बढ़ा रहे है।
क्या अब आरक्षण खत्म करेगी मोदी सरकार? RSS प्रमुख का बयान- आरक्षण पर राष्ट्रीय बहस हो
सुनील सिंह यादव ने ट्विटर पर लिखा, संघ-भाजपा ने फिर अपनी गन्दी नजर दलितों -पिछड़ो के आरक्षण पर गड़ा दी है। RSS प्रमुख मोहन भागवत रणनीति समीक्षा के बहाने आरक्षण खत्म कर संघ की तरह सरकार में भी मनुवाद का वर्चस्व बनाने को हैं। देश की 85% आबादी का आगे बढ़ने का मौका छीन ये काले अंग्रेज उसे गुलाम बनाये रखना चाहते हैं।
संघ-भाजपा ने फिर अपनी गन्दी नजर दलितों -पिछड़ो के आरक्षण पर गड़ा दी है। RSS प्रमुख मोहन भागवत रणनीति समीक्षा के बहाने आरक्षण खत्म कर संघ की तरह सरकार में भी मनुवाद का वर्चस्व बनाने को हैं। देश की 85% आबादी का आगे बढ़ने का मौका छीन ये काले अंग्रेज उसे गुलाम बनाये रखना चाहते हैं।
— Sunil Singh Yadav (@sunilyadv_unnao) August 20, 2019
इससे पहले कांग्रेस नेता प्रियंका गाँधी ने कहा, “RSS का हौसला बढ़ा हुआ है और मंसूबे खतरनाक हैं। जिस समय भाजपा सरकार एक-एक करके जनपक्षधर कानूनों का गला घोंट रही है। RSS ने भी लगे हाथ आरक्षण पर बहस करने की बात उठा दी है। बहस तो शब्दों का बहाना है मगर RSS-BJP का असली निशाना सामाजिक न्याय है। लेकिन क्या आप ऐसा होने देंगे?”
मंदिरों में आरक्षण लागू करके दिखाए RSS जहां दलित भी पुजारी बन सकें, फिर बहस के लिए तैयार हैं हम
गौरतलब हो कि संघ प्रमुख मोहन भागवत ने एक कार्यक्रम में आरक्षण पर विचार करने को लेकर बयान दिया था। उन्होंने कहा कि जो आरक्षण के पक्ष में हैं और जो इसके खिलाफ हैं, उन्हें सौहार्दपूर्ण वातावरण में इस पर विमर्श करना चाहिए। उन्होंने कहा कि मैंने आरक्षण को लेकर पहले भी चर्चा की थी मगर ये मुद्दे से भटक गया था,भागवत ने कहा कि आरक्षण पर विचार विमर्श हो चाहिए।
बता दें कि भारतीय सविंधान के तहत आरक्षण का प्रावधान किया गया है। जिसमें अनुसूचित जाति (SC)को 15 फीसदी, अनुसूचित जनजाति (ST) को 7.5 फीसदी, OBC यानी की पिछड़ी जातियों को 27 फीसदी और गरीब सवर्णों को 10 फीसदी आरक्षण मिल रहा है। बाकी बची 40.5 फीसदी नौकरियां सामान्य जातियों के लिए हैं।