मोदी सरकार ने शिक्षा संस्थानों से जुड़ा एक विवादास्पद फैसला लिया है। केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने देश के 60 शिक्षण संस्थानों को स्वायत्तता दे दी है। 5 केंद्रीय विश्वविद्यालय जिनमें जेएनयू, बीएचयू, अलीगढ़ विश्वविद्यालय भी शामिल हैं। 21 राज्य विश्वविद्यालय, 24 डीम्ड यूनिवर्सिटी, 2 प्राइवेट विश्वविद्यालय और 8 निजी संस्थानों को स्वायत्ता दी गई है।
केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने मंगलवार को कहा कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने पांच केंद्रीय एवं 21 राज्य विश्वविद्यालयों सहित 62 उच्च शैक्षणिक संस्थाओं को पूर्ण स्वायत्तता दी है।
उन्होंने कहा कि जिन संस्थाओं को पूर्ण स्वायत्तता दी गई है वे अपनी दाखिला प्रक्रिया, फीस की संरचना और पाठ्यक्रम तय करने के लिए स्वतंत्र होंगे।
फेडरेशन ऑफ सेंट्रल यूनिवर्सिटी टीचर्स एसोसिएशन (एफईडीक्यूटीए) ने फैसले को शिक्षा में बाज़ारवाद को बढ़ावा देने वाला और मार्केट आश्रित करने के लिए गुमराह करने का प्रयास बताया है। वहीं अब जेएनयू टीचर्स एसोसिएशन (जेएनयूटीए) ने भी इस फैसले की आलोचना की है।
जेएनयूटीए ने कहा है कि ये स्वायत्ता मोदी सरकार की राष्ट्रीय शिक्षा योजना का हिस्सा है। इसके ड्राफ्ट को सरकार ने विपक्ष के विरोध के चलते संसद में वापस ले लिया था। अब सरकार दूसरे तरीकों के द्वारा इसे लागू करना चाह रही है। उन्होंने कहा कि इस फैसले से शिक्षा महंगी होगी और भारतीय छात्रों के लिए मुश्किलें बढ़ जाएंगी।
उन्होंने कहा कि इस गज़ट नोटिफिकेशन के खंड 4.1 से 4.4 तक में कहा गया है कि शिक्षा संस्थानों को अब नए विभाग, नए कोर्स और नए केंद्र आदि खोलने या शुरू करने के लिए यूजीसी की अनुमति नहीं चाहिए होगी। लेकिन ये सब ‘सेल्फ-फिनान्सिंग’ यानि अपने पैसे पर किया जाएगा सरकार इसके लिए कोई पैसा नहीं देगी। इस कारण शिक्षा संसथान फीस बढ़ा सकते हैं। गरीब छात्रों के लिए शिक्षा पाने के अवसर घट सकते हैं।
गौरतलब है कि देश में अभी भी संसाधनों की कमी के कारण पिछड़ा और गरीब तबका उच्च शिक्षा हासिल नहीं कर पाता है। अभी भी देश में लगभग 8% लोग ही ग्रेजुएट हैं। ऐसे में सरकार का ये फैसला देश की बड़ी युवा आबादी के लिए घातक साबित हो सकता है।
जेएनयूटीए ने सरकार के उस कदम की भी आलोचना की है जिसमें 20% आरक्षण विदेशी नागरिकों के लिए रखा है। ये आरक्षण शिक्षा संस्थानों में पढ़ाई और शिक्षक के पद दोनों के लिए दिया गया है। जेएनयूटीए का कहना है इस कदम से भारतीय छात्रों के लिए संभावनाएं कम हो जाएंगी।