मुजफ्फरनगर में सन 2013 में हुए दंगे में दर्ज 77 मुकदमे योगी सरकार ने वापस ले लिए हैं। गौर करने वाली बात यह है कि योगी सरकार ने इन मुकदमों को वापस लेने के कारण तक नहीं बताए है।

कई मामलों का संबंध भादंसं की धारा 397 के तहत डकैती जैसे अपराधों से है जिनमें उम्रकैद तक की सजा का प्रावधान है।

दर्ज़ मुक़दमों को लेकर एमिकस क्यूरी विजय हंसारिया ने सुप्रीम कोर्ट में जमा की गई रिपोर्ट से यह जानकारी मिली कि इन मामलों की जांच हाई कोर्ट के द्वारा की जा सकती है।

यह रिपोर्ट विधायकों के ख़िलाफ़ दर्ज लंबित मुक़दमों से जुड़ी है। उत्तर प्रदेश के अलावा बाक़ी कई ऐसे राज्य है जिन्होनें अपने विधायकों के ख़िलाफ़ दर्ज कई मुक़दमों को वापस ले लिया है।

न्याय मित्र ने अपनी रिपोर्ट में शीर्ष अदालत को बताया कि राजनीतिक और बाहरी कारणों से मुकदमे वापस लेने में राज्य द्वारा सत्ता के बार-बार दुरुपयोग को देखते हुए अदालत पहले से निर्धारित दिशानिर्देशों के अलावा कुछ और निर्देश जारी कर सकती है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य सरकार ने न्यायमित्र को सूचित किया है कि 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों से संबंधित 510 मामले मेरठ क्षेत्र के पांच जिलों में 6,869 आरोपियों के खिलाफ दर्ज किए गए थे।

इनमें से 175 मामलों में आरोपपत्र दाखिल किया गया, 165 मामलों में अंतिम रिपोर्ट पेश की गई और 170 मामलों को हटा दिया गया।

रिपोर्ट में कहा गया है, “इसके बाद राज्य सरकार द्वारा सीआरपीसी की धारा 321 के तहत 77 मामले वापस ले लिए गए।

सरकारी आदेश सीआरपीसी की धारा 321 के तहत मामले को वापस लेने का कोई कारण नहीं बताते हैं। इसमें केवल यह कहा गया है कि प्रशासन ने पूरी तरह से विचार करने के बाद निर्णय लिया है।”

न्यायमित्र ने प्रस्तुत किया कि केरल राज्य बनाम के.अजीत 2021 के मामले में शीर्ष अदालत द्वारा निर्धारित कानून के आलोक में, सीआरपीसी की धारा 401 के तहत पुनरीक्षण क्षेत्राधिकार का प्रयोग करके उच्च न्यायालय द्वारा 77 मामलों की जांच की जा सकती है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि कर्नाटक सरकार ने 31 अगस्त, 2020 को 62 मामलों को वापस लेने की अनुमति देने का आदेश पारित किया। आदेश में केवल यह कहा गया है कि सरकार ने बिना कोई कारण बताए निकासी की अनुमति दी है।

न्यायमित्र ने राजनीतिक और बाहरी कारणों से अभियोजन वापस लेने में राज्य द्वारा सत्ता के बार-बार दुरुपयोग को देखते हुए निर्देश दिए जाने का सुझाव दिया।

रिपोर्ट में कहा गया है, “उपयुक्त सरकार लोक अभियोजक को निर्देश तभी जारी कर सकती है, जब किसी मामले में सरकार की राय हो कि अभियोजन दुर्भावनापूर्ण तरीके से शुरू किया गया था और आरोपी पर मुकदमा चलाने का कोई आधार नहीं है।”

इसमें आगे कहा गया है कि ऐसा आदेश संबंधित राज्य के गृह सचिव द्वारा प्रत्येक व्यक्तिगत मामले के लिए दर्ज किए जाने वाले कारणों के लिए पारित किया जा सकता है।

रिपोर्ट में कहा गया है, “इस माननीय न्यायालय के 16 सितंबर, 2020 के आदेश के बाद धारा 321 सीआरपीसी के तहत वापस लिए गए सभी मामलों की संबंधित उच्च न्यायालयों द्वारा धारा 401 सीआरपीसी के तहत पुनरीक्षण क्षेत्राधिकार का प्रयोग करके जांच की जा सकती है।”

साथ ही आपको बता दें, मुज़फ्फरनगर दंगों में 62 लोगों की मौत हो गई थी और 50 हज़ार से ज़्यादा लोगों को बेघर होना पड़ा था।

मुज़फ्फरनगर में हुए दंगों को लेकर 6,869 अभियुक्तों के ख़िलाफ़ 510 मामले दर्ज किए गए थे। इनमें से 175 मामलों में चार्जशीट दायर की गई थी, 165 में फ़ाइनल रिपोर्ट लगाई गई थी और 170 मामलों को ख़त्म कर दिया गया था।

हंसारिया ने अपनी रिपोर्ट में कर्नाटक सरकार का भी जिक्र किया है, जिसने बिना वजह बताए 62 मुक़दमे वापस लिए हैं। इसी तरह तमिलनाडु ने चार मुक़दमे, तेलंगाना ने 14 और केरल सरकार ने 36 मुक़दमे वापस ले लिए हैं।

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