पॉलिटिक्स के मैदान में उतरने के पहले सोनी स्कूल टीचर हुआ करती थी। माओवादियों से रिश्ते होने का आरोप लगा था। उसके बाद जो हुआ वो और जिस तरह सोनी सोरी ने मुकाबला किया वो उन्हें इस लिस्ट में शामिल करता है।

2010 से 2013 के बीच कैद के दौरान सोनी को दिल्ली से दांतेवाड़ा शिफ्ट किया गया। उन्होंने कहा कि वह दंतेवाड़ा की जेल में नहीं रहना चाहती हैं, क्योंकि वहां उन्हें सुरक्षा का खतरा है। फिर भी उन्हें शिफ्ट कर दिया।

आरोप है कि दंतेवाड़ा में पूछताछ के बहाने जेल में सोनी का रेप किया गया। सोनी ने अपने बयान में कहा कि उनके कपड़े फाड़कर उन्हें इलेक्ट्रिक शॉक दिया गया। ये सब वहां के एसपी अंकित गर्ग के आदेश पर हुआ।

सोनी ने ये भी बताया जब उनके कपड़े फाड़े जा रहे थे, एसपी अंकित गर्ग अपनी कुर्सी पर बैठे उन्हें घूर रहे थे, उन्हें भद्दी गालियां दे रहे थे, अश्लील बातें कर रहे थे।

फिर तीन मर्दों ने मिल कर सोनी से सेक्शुअल असॉल्ट किया और उनकी वजाइना में कंकड़ ठूस दिए। सोनी को अस्पताल में भर्ती कराया गया। अस्पताल में सोनी की हालत इतनी बिगड़ गई थी कि लगा उनकी जान नहीं बच पाएगी। आज सोनी सोरी दुनिया भर में संघर्ष की पर्याय है। (साभार- दी लल्लनटॉप)

इरोम चानू शर्मिला-

‘आयरन लेडी’ के नाम से मशहूर इरोम मणिपुर से अफस्पा को हटाए जाने की मांग पर 2 नवंबर 2000 से 9 अगस्त 2016 तक भूख हड़ताल किया था। यानी इरोम ने 16 साल भूख हड़ताल पर रहीं। भारत में आज तक किसी ने भी इतने लम्बे समय तक भूख हड़ताल नहीं किया। अनशन के दौरान उन्हें कई बार गिरफ्तार किया गया और जबर्दस्ती नैजल टयूब के जरिए खाना भी खिलाया गया। लेकिन उन्होंने अपनी जिद नहीं छोड़ी थी।

उन्होंने जब भूख हड़ताल की शुरुआत की थी, वे 28 साल की युवा थीं। कुछ लोगों को लगा था कि यह कदम एक युवा ने भावुकता में उठाया है, लेकिन समय के साथ इरोम शर्मिला के इस संघर्ष की सच्चाई लोगों के सामने आती गई। आज वह 46 साल की हो चुकी हैं।

इरोम को कई साल से नाक में डली ट्यूब के ज़रिये जबरन खिलाया जा रहा है। उनके नाम पर अबतक दो रिकॉर्ड दर्ज हो चुके हैं। पहला सबसे लंबी भूख हड़ताल करने और दूसरा सबसे ज्यादा बार जेल से रिहा होने का रिकॉर्ड दर्ज है। 2014 में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर उन्हें एमएसएन ने वूमन आइकन ऑफ इंडिया का खिताब दिया था।

मेधा पाटकर-

हमेशा सादी-सी सूती साड़ी और हवाई चप्पल पहनने वाली ‘नर्मदा की नायिका’ मेधा पाटकर को नर्मदा घाटी की आवाज़ के रूप में पूरी दुनिया में जाना जाता। कई ऐसे मौक़े आए हैं जब लोगों ने अपने नेता का जुझारू रूप देखा है। 1991 में 22 दिनों का अनशन करके वे लगभग मौत के मुंह में चली गई थीं। 1993 और 1994 में भी वे ऐसे लंबे उपवास कर चुकी हैं।

मेधा पाटकर को कई अंतरराष्ट्रीय सम्मान मिल चुके हैं जिनमें गोल्डमैन एनवायरमेंट अवार्ड भी शामिल है। बाबा आमटे और अन्ना हज़ारे जैसे प्रतिष्ठित सामाजिक कार्यकर्ता उनके आंदोलन को अपना समर्थन देते हैं।

मेधा पाटकर के बारे में लोग अक्सर मज़ाक में कहते हैं कि नारे लगा-लगाकर उनकी आवाज़ हमेशा के लिए बैठ गई है। वे नर्मदा से जुड़े हर आंदोलन में 1985 से ही सक्रिय हुईं और आज भी हैं।

फूलन देवी-

चंबल के बीहड़ों से संसद तक पहुंचने वाली बैंडिट क्वीन 1980 के दशक के शुरुआत में सबसे ख़तरनाक डाकू मानी जाती थीं। फूलन देवी का जन्म उत्तर प्रदेश के एक गाँव में 1963 में हुआ था और 16 वर्ष की उम्र में ही कुछ डाकुओं ने उनका अपहरण कर लिया था।

बस उसके बाद ही उनका डाकू बनने का रास्ता बन गया था और उन्होंने 14 फ़रवरी 1981 को बहमई में 22 ठाकुरों की हत्या कर दी थी। इस घटना ने फूलन देवी का नाम बच्चे की ज़ुबान पर ला दिया था। फूलन देवी का कहना था उन्होंने ये हत्याएं बदला लेने के लिए की थीं।

उनका कहना था कि ठाकुरों ने उनके साथ सामूहिक बलात्कार किया था जिसका बदला लेने के लिए ही उन्होंने ये हत्याएं कीं।

फूलन 1998 का लोकसभा चुनाव हार गईं लेकिन अगले ही साल हुए 13वीं लोकसभा के चुनाव में वे फिर जीत गईं। 25 जुलाई 2001 को उनकी हत्या कर दी गई।

सावित्रीबाई फुले-

सावित्रीबाई फुले देश की पहली महिला शिक्षिका थीं। जब वो चलती थीं तो लोग उनपर गोबर फेंकते। कूड़ा फेंकते। पत्थर फेंकते। वो बगल में एक अदद दूसरी साड़ी दबाए आगे बढ़ जाती। उनकी उम्मीद और मेहनत इन पत्थरों के ज़ख्म, कूड़े और गोबर की गन्दगी से कहीं ज़्यादा बड़ी थी।

उन्होंने लड़कियों का पहला स्कूल खोला और खुद पहली महिला शिक्षिका होने का जिम्मा भी उठाया। उन्होंने कलम उठाकर मराठा ज़मीन पर कविता उकेरी वहीं हिम्मत देकर लड़कियों को कलम पकड़ाई। यह वो पहली औरत है जिसके सामने हाथ में पत्थर लिए मर्द-औरतें झुकती चली गईं।

जो लड़कियां आज़ादी की बात करती हैं, जो युवा, युवती खुले आसमान की वकालत करते हैं। वह गहरी आँखों से सावित्री बाई फूले को देख ले, पढ़ ले और अपनी उम्मीद और ख्वाहिश को ज़मीन दें। लोग सावित्री बाई के पैरों में कांटे बो रहे थें, और वो उनकी नस्लों के पाँव के कांटे चुन रही थीं। कम से कम आज हमसब को उनपर फेंकी गई गन्दगी को महसूस करना चाहिएं। सावित्री बाई का आँचल हमसब को महका देगा। आज उनको रोज़ से ज़्यादा याद करें।

मायावती-

‘औरत को अपनी जगह नहीं भूलनी चाहिए. अगर दलित हो तो बिल्कुल नहीं.’ ये हिंदुस्तान की राजनीति का अनलिखा संविधान है। पर इस संविधान में संशोधन करने वाला एक नाम है जो हमेशा समाज के निशाने पर रहा है – मायावती।

वो समाज के हर उस नियम को तोड़ती हैं, जिसे तोड़ने की ख्वाहिश आज के दौर की हर फेमिनिस्ट रखती है। वो परंपरागत सजने-संवरने को कब का धक्का मार चुकी हैं। मधुर बोलना और नजरें झुका के चलना। मजाक मत करिए। शील वाली बीमारी इनके पास भी नहीं फटकती. लज्जा स्त्रियों का आभूषण है. निर्लज्जता मर्दों का हथियार। अच्छा? माया सूट पहनती हैं और जूतियां भी।

माया ने समाज के नियमों के विपरीत शादी नहीं की। बच्चे नहीं पैदा किए। परिवार नहीं बसाया. पर यूपी में परिवार विहीन होना तो शास्त्रों के हिसाब से पाप की कैटेगरी में आता है। मायावती ने ये ‘विष’ पी लिया। 70-80 के दशक में जब संपूर्ण क्रांति करने के बाद देश फिर इंदिरा की तरफ मुड़ चुका था, उस वक्त मायावती ने कांशीराम के घर में रहने का फैसला किया।

उन पर तमाम लांछन लगे। पर माया ने कभी परवाह नहीं की. ये एक लड़की की ताकत की एक झलक थी। बसपा मैनिफेस्टो जारी नहीं करती। मायावती खुद एक घोषणापत्र हैं। खुद एजेंडा हैं। भारत के इतिहास की सबसे बड़ी जादूगरनी। (साभार- दी लल्लनटॉप)

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