सत्ता सुख ने मीडिया को कई खेमों में बांट दिया है लेकिन सरकारी खेमा काफी मजबूती से खड़ा नजर आ रहा है।
वह दंगे भड़कता है और मांफी भी नहीं मांगता है। वह लोगों को दंगे में गलत जानकारी बांटता है फिर भी बड़ी बेशर्मी से हंसता हुआ नजर आता है।
सवाल यह है कि वह ऐसा सबकुछ करके अपने मालिक से आँखे कैसे मिलाता है ? क्या कभी मालिक भी सवाल कर पाता या वह खुद मालिक है इसलिए उसे किसी का डर नहीं सताता है।
कासगंज हिंसा ताजा उदाहरण है जिसमें आजतक के एंकर ने खुलेआम गलत रिपोर्टिंग करके दंगे भड़काए।
वहीं दूसरी महिला एंकर जो खुलेआम सरकारी चापलूसी में 2000 के नोट में चिप के फायदे गिनाती पकड़ी गई।
लेकिन इन दोनों पर ना कोई कार्रवाई या जवाबदेही इनका हौंसला बढ़ाती रही।
त्रिपुरा में रूसी नायक लेनिन की मूर्ति गिरा दी गई। अराज़क व हिंसक भीड़ ने शर्मनाक हरकत की।
इस कृत्य की निंदा करने के वजाए आजतक के दो पत्रकारों ने जो लिखा वह खुद निंदनीय है।
आजतक की महिला एंकर श्वेता सिंह ने लिखा कि, भगत सिंह से सिर्फ़ लेनिन-प्रेम सीखा, देश-प्रेम नहीं?
वहीं रोहित सरदाना ने लिखा कि, जिन्होंने केरल में जीते-जागते आदमी मार देने के बाद उफ़्फ़ तक नहीं की, वो आज लेनिन की मूर्ति टूटने पे रुदन कर रहे हैं? #Lenin
सोशल मीडिया पर तमाम लोगों ने इनके ट्वीट की आलोचना की।