नोटबंदी पर रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया (आरबीआई) के रिपोर्ट आने के बाद मोदी सरकार की चौतरफा आलोचना हो रही है। विपक्ष से लेकर देश के जानेमाने अर्थशास्त्री भी सरकार के कदम को बेवकूफाना बता रहे हैं। अब भारत के पूर्व मुख्य सांख्यिकीविद् प्रणब सेन का नाम भी इस लिस्ट में जुड़ गया है।

केंद्रीय बैंक ने बताया है कि नोटबंदी के दौरान 15.44 लाख करोड़ रुपए के नोटों पर प्रतिबन्ध लगाया गया था। और इनमें से 15.31 लाख करोड़ रुपए बैंकों में वापस आ चुके हैं।

मतलब केवल 13000 करोड़ रुपए ही बैंकों में वापस नहीं आ सके। यानि की प्रतिबन्ध किए गए नोटों के 1 प्रतिशत से भी कम। नोटबंदी के दौरान बंद किये गए 500 और 1000 रुपये के 99.3% नोट वापस आ गए हैं। आरबीआई ने ये जानकारी बुधवार को जारी अपनी एक रिपोर्ट में दी।

प्रणब सेन ने इस घटना को अपेक्षा के मुताबिक बताया है। जानेमाने अर्थशास्त्री ने नोटबंदी की पूरी प्रक्रिया को विफल बताया है। सेन ने आगे कहा कि सरकार इस बात में विफल रही कि कैसे कालाधन अर्थव्यवस्था में परिचालित होता है।

सेन ने कहा, ‘नोटबंदी सफल रही या विफल ये उसके उद्देश्यों पर निर्भर करता है। सरकार ने जिन नोटों को अवैध करार दिया था, वो सिस्टम में अब वापस नहीं आएंगे। अनुमान के मुताबिक, इनकी संख्या करीब 3 लाख करोड़ थी।

उन्होंने कहा कि अगर इसे सरकार का उद्देश्य कहा जाए, तो हां सरकार का ये उद्देश्य फेल हो गया। क्योंकि, ऐसे नोटों का कुल आंकड़ा 13 हज़ार करोड़ है। ये नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, म्यांमार जैसे देशों की वजह से है, क्योंकि इन देशों के पास करेंसी के एक्सचेंज की सुविधा नहीं है।’

सेन ने कहा, ‘किसी भी व्यक्ति को जिसे थोड़ी सी भी इस बात की समझ होगी कि कैसे कालाधन काम करता है, ये जानता था कि इसका यही परिणाम होगा। मैं बिल्कुल आश्वस्त था कि ज्यादातर नोट वापस लौट आएंगे।

इसका कारण है कि कोई भी कालेधन को अपने पास नहीं रखता। केवल कुछ अस्थायी उपायों को छोड़ दिया जाए तो बहुत ही कम लोग इसे नकदी में रखते हैं।

उन्होंने आगे विस्तृत रूप से समझाते हुए कहा कि कालेधन के दो सबसे सामान्य उपयोग व्यापार और पैसे का लेनदेन करना है। उन्होंने कहा, ‘पूरा व्यापार नकदी पर चलता है, जिसमें से एक अच्छा-खासा हिस्सा कालाधन है।

ये दोनों ही आर्थिक रूप से मूल्यवान गतिविधियां हैं। इसमें कोई शक नहीं है कि इन दोनों गतिविधियों में कालेधन का उपयोग कम हुआ है, लेकिन उस हिसाब से नहीं जितनी सरकार ने उम्मीद की थी।’

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