26 अक्टूबर को आजादी के पहले की पत्रकारिता के श्लाका पुरुष गणेश शंकर विद्यार्थी की जयंती होती है। देश की ‘स्वयंभू राष्ट्रवादी जमात’ के लोग उन्हें अपने पाले में मानते हुए जहां-तहां उनके सम्मान में समारोह आयोजित करते रहते हैं।

उनके नाम पर ‘अपनी धारा’ के लोगों को पुरस्कार देते हैं और विद्यार्थी जी जैसी पत्रकारिता पर भाषण देकर उन जैसा बनने की नसीहत देते हैं।

मैं बीते चार सालों में ऐसे तीन-चार समारोहों में गया हूं। हम जैसे लोग गणेश शंकर विद्यार्थी के पैरों की धूल के बराबर भी नहीं लेकिन जो लोग उन्हें अपने पाले में मानते हुए उन जैसी पत्रकारिता करने की सलाह देते हैं उन्हें गणेश शंकर विद्यार्थी का लिखा ही सुनाता हूं।

गणेश शंकर विद्यार्थी के लिखे को सुनते वक्त वो मुंह लटकाए बैठे रहते हैं क्योंकि गणेश शंकर विद्यार्थी पर भाषण दे चुके महानुभाव उन्हें अपनी तरह वाला राष्ट्रवादी घोषित करते वक्त ये छुपा जाते हैं कि विद्यार्थी जी का राष्ट्रवाद वो नहीं था, जो नफरत करना सिखाए।

विद्यार्थी जी का राष्ट्रवाद हर तरह के कट्टरपन के खिलाफ था। गणेश शंकर विद्यार्थी की मौत भी कानपुर में हुए दंगों के दौरान ही हुई थी, जब वो कुछ लोगों को बचाने के लिए खुद निकल पड़े थे। महज चालीस साल की उम्र में ये सितारा दंगाईयों के हाथों ही अस्त हुआ था।

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मरते दम तक विद्यार्थी जी सदभाव के हिमायती थे। उनके लिखे को पढ़े बगैर उन्हें ‘अपने जैसा राष्ट्रवादी’ मानने वाले भाई लोग उन्हें पढ़ें पहले… तो आज इस मौके पर गणेश शंकर विद्यार्थी का लिखी कुछ लाइनें पढ़ें और उन्हें समझें…

गणेश शंकर विद्यार्थी धार्मिक कर्मकांडों की आलोचना करते हुए कहते लिखा था- ‘अजां देने, शंख बजाने और नमाज पढ़ने का मतलब धर्म नहीं है। दूसरों की आजादी को रौंदने और उत्पात मचाने वाले धार्मिक लोगों की तुलना में वे ला-मजहब और नास्तिक आदमी कहीं अधिक अच्छे और ऊंचे दर्जे के हैं, जिनका आचरण अच्छा है।’

राष्ट्रीयता शीर्षक से लिखे अपने एक लेख में उन्होंने लिखा था- ‘हमें जानबूझकर मूर्ख नहीं बनना चाहिए और गलत रास्ते नहीं अपनाने चाहिए। हिंदू राष्ट्र-हिंदू राष्ट्र चिल्लाने वाले भारी भूल कर रहे हैं। इन लोगों ने अभी तक राष्ट्र शब्द का अर्थ ही नहीं समझा है।’

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आजादी के पहले भी हिन्दू राष्ट्र और अंध राष्ट्रवाद के पैरोकारों के खिलाफ विद्यार्थी जी लगातार लिखा करते थे। उन्होंने 21 जून 1915 को ‘प्रताप’ में लिखा था – ‘देश में कहीं कहीं राष्ट्रीयता के भाव को समझने में गहरी भूल की जा रही है। हर रोज इसके प्रमाण हमें मिलते रहते हैं। यदि हम इसके भाव को अच्छे तरीके से समझ चुके होते तो इससे जुड़ी बेतुक बातें सुनने में न आतीं।’

धर्म के नाम पर उत्पात और सियासत करने वालों पर विद्यार्थी जी हमेशा चोट किया करते थे। उन्होंने लिखा था – ‘देश में धर्म की धूम है और इसके नाम पर उत्पात किए जा रहे हैं।

लोग धर्म का मर्म जाने बिना ही इसके नाम पर जान लेने या देने के लिए तैयार हो जाते हैं। ऐसे लोग कुछ भी समझते-बूझते नहीं हैं। दूसरे लोग इन्हें जिधर जोत देते हैं, ये लोग उधर ही जुत जाते हैं।’

  • अजीत अंजुम

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