साल 2011 के वक़्त भारतीय क्रिकेट टीम विश्वकप जीत चुकी थी। मगर देश में उसके बाद सबसे बड़ा भ्रष्टाचार की बड़ी लड़ाई लड़ी जानी थी जिसे महाराष्ट्र के एक छोटे से गाँव से आये अन्ना हजारे को लड़ना था।

एक-एक करके सभी समाजसेवक उनके साथ मंच पर नज़र आने लगे और उसके बाद तत्कालीन यूपीए की सरकार ने उन्हें लोकपाल बिल को हरी झंडी दे दी थी।

मगर आज 7 साल गुज़र गए केंद्र में मनमोहन सरकार से मोदी सरकार आ गई मगर उनकी मांगें नहीं मानी गई। जिसके बाद अन्ना हजारे फिर से रामलीला मैदान में अनशन पर बैठ गए और आज जब सातवें दिन उन्होंने अनशन ख़त्म किया तो उनके साथ कोई भी उनका पुराना साथी मौजूद नहीं था जो उनके कंधे पर चढ़कर सियासत या कारोबार में कदम रखा और अपना नाम अन्ना हजारे से बड़ा कर लिया।


मगर इस अनशन में उनके साथ कोई भी नज़र नहीं आया न दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल न किरण बेदी और न ही स्वामी रामदेव जिन्होंने उनके साथ कंधे से कन्धा मिलाकर कहीं न कहीं कांग्रेस विरोधी हवा बनाई और 10 साल केंद्र की सत्ता में काबिज़ मनमोहन सिंह की सरकार को बेदखल कर दिया।

आज जब अनशन टूट गया तो जूस पिलाने वालों में कोई एक ऐसा चेहरा नहीं था जो उनकी मदद से सरकार का सुख अलग अलग जगहों पर उठा रहा है।

चाहे वो अभिनेता अनुपम खेर हो या फिर यमुना को प्रदूषित करने वाले श्री श्री रविशंकर उनके साथ इस बार कोई भी नहीं था और न ही किसी ने उनके इस अनशन का समर्थन किया।

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