असम में आज नेशनल सिटिज़न रजिस्टर यानी NRC की फाइनल लिस्ट जारी कर दी गई है। इस लिस्‍ट में 19 लाख 6 हज़ार 657 लोग अपनी जगह नहीं बना पाए हैं।

एनआरसी के स्टेट कॉर्डिनेटर प्रतीक हजेला ने बताया कि 3 करोड़ 11 लाख 21 हज़ार लोगों का एनआरसी की फाइनल लिस्ट में जगह मिली और 19,06,657 लोगों को बाहर कर दिया गया। जो लोग इससे संतुष्ट नहीं है, वे फॉरनर्स ट्रिब्यूनल के आगे अपील दाख़िल कर सकते हैं।

इस लिस्ट के जारी होते ही इसपर सवाल उठने लगे हैं। विपक्षी नेताओं के साथ ही बीजेपी के अपने नेता असम के वित्‍त मंत्री हिमंत बिस्वा शर्मा भी इससे संतुष्ट नज़र नहीं आ रहे। उन्होंने इस लिस्ट की निष्पक्षता को लेकर कई सवाल खड़े किए हैं।

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उन्होंने कहा है कि 1971 से पहले शरणार्थी के रूप में बांग्लादेश से पलायन करने वाले कई भारतीय नागरिकों के नाम एनआरसी में शामिल नहीं किए गए हैं। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि अधिकारियों ने शरणार्थी प्रमाण पत्र लेने से इनकार कर दिया था। डेटा में हेरफेर कर के कई लोगों का नाम इसमें जोड़ा गया।

बीजेपी नेता ने कहा, ‘मैं फिर से कहता हूं कि जैसा कि केंद्र और राज्य सरकारों ने अनुरोध किया है कम से कम सीमावर्ती क्षेत्रों में 20% और शेष जगहों पर 10% पुनः सत्यापन के लिए सुप्रीम कोर्ट से अनुमति मिलनी चाहिए। ताकि एनआरसी सही और निष्पक्ष हो सके’।

इससे पहले शुक्रवार को उन्होंने कहा, ‘हम ड्राफ्ट के ठीक बाद से एनआरसी के वर्तमान स्वरूप से उम्मीद खो चुके हैं। जब इतने सारे वास्तविक भारतीय बाहर हैं, तो यह कैसे दावा किया जा सकता है कि यह दस्तावेज असमिया समाज के लिए रेड लेटर है।’

उन्होंने कहा, ‘साउथ सलमरा और धुबरी की तरह बांग्लादेश की सीमा वाले जिलों में, बाहर निकाले जाने की दर सबसे कम है और भूमिपुत्र जिले में, यह अधिक है. यह कैसे हो सकता है? हमें अब इस एनआरसी में कोई दिलचस्पी नहीं है’।

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