आज़ादी को 70 बरस हो गए। देश में तमाम आरक्षण आने के बाद आज भी दलित, अनुसूचित जाति/जनजाति और मुसलमानों की हालत सुधरी भी है तो उसमें महज कुछ प्रतिशत ही इजाफा हुआ है। पिछड़ों और मुसलमानों की खराब स्थिति की तस्दीक सोमवार को मोदी सरकार ने भी कर दी।
लोकसभा में सांसद राजू शेट्टी के प्रश्न के उत्तर में मानव संसाधन विकास राज्यमंत्री उपेन्द्र कुशवाहा ने जानकारी देते हुए बताया कि “देश में स्कूली शिक्षा को बीच में ही छोड़ने वाले (ड्रॉप आउट) बच्चों में अनुसूचित जाति और मुस्लिम समुदायों के छात्रों की संख्या सबसे अधिक है।”
कुशवाहा ने बताया कि एकीकृत जिला शिक्षा प्रणाली के अनुसार मुस्लिम और अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के विद्यार्थियों का ड्रॉप आउट देश के औसत ड्रॉप आउट से अधिक है। उन्होंने आकड़ा पेश करते हुए कहा कि “प्राथमिक स्तर पर देश के सभी वर्गों के बच्चों का औसत ड्रॉप आउट दर 4.13 फीसदी है तो अनुसूचित जाति का 4.46, अनुसूचित जनजाति का 6.93 फीसदी और मुस्लिम समुदाय का 6.54 फीसदी है।
वहीं उच्च प्राथमिक शिक्षा में सभी श्रेणियों का औसत ड्रॉप आउट दर 4.03 फीसदी है तो जाति अनुसूचित जाति का 5.51 फीसदी, अनुसूचित जनजाति का 8.59 फीसदी और मुस्लिम समुदाय का सबसे ज्यादा 9.49 फीसदी है।
माध्यमिक स्तर पर सभी श्रेणियों का औसत ड्रॉप आउट दर 17.06 फीसदी है, अनुसूचित जाति का 19.36 फीसदी, अनुसूचित जनजाति का 24.68 फीसदी और मुस्लिम समुदाय का 24.12 फीसदी है।
इसीलिए पढाई के आभाव में बढ़ई, सफाई वाला, मिस्त्री, रिक्शेवाला जैसे काम करते वालों में सबसे ज्यादा लोग या तो दलित पिछड़े होते हैं या फिर मुसलमान समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। अगड़ी जातियों की इसमें भागीदारी बहुत कम होती है।