हाल में केंद्रीय सरकार ने भारत के तीन बैंकों (बैंक ऑफ़ बड़ौदा, विजया बैंक और देना बैंक) के विलय का प्रस्ताव दिया है। उन्होंने कहा है कि इस फैसले से इन बैंकों के फंसे हुए कर्ज (एनपीए) की समस्या का निवारण हो जाएगा।

लेकिन बैंक यूनियनों का कहना है कि ये फैसला बड़ी कंपनियों से क़र्ज़ वसूली व बढ़ते एनपीए से ध्यान भटकाने के लिए हुआ है।

बता दें, कि देना बैंक का एनपीए 11 % से ज़्यादा का हो चुका है। विजय बैंक और बैंक ओद बड़ोदा का एनपीए भी 6% के करीब है। एन.पी.ए बैंकों का वो लोन होता है जिसके वापस आने की उम्मीद नहीं होती। इस कर्ज़ में 73% से ज़्यादा हिस्सा उद्योगपतियों का है।

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अक्सर उद्योगपति बैंक से कर्ज़ लेकर खुद को दिवालिया दिखा देते हैं और उनका लोन एन.पी.ए में बदल जाता है। यही उस लोन के साथ होता है जिसे बिना चुकाए नीरव मोदी और विजय माल्या जैसे लोग देश छोड़कर भाग जाते हैं।

यूनियनों का आरोप है कि सरकार का इस कदम के पीछे मकसद एनपीए और बड़ी कंपनियों से कर्ज की वसूली के मुद्दे से ध्यान हटाना है। यूनियनों का कहना है कि सरकार बड़े उद्योगपतियों से पैसा नहीं वसूल कर पा रही है।

इसलिए दो सही स्तिथि वाले बैंक के साथ एक ख़राब का विलय किया जा रहा है। लेकिन इस से बाकि के दो बैंकों की स्तिथि भी बिगड़ेगी।

एआईबीओसी ने कहा कि विजय माल्या, नीरव मोदी और मेहुल चोकसी के खिलाफ कड़ी दंडात्मक कार्रवाई नहीं होना सरकार की ओर से राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी को दर्शाता है।

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केंद्र सरकार के तीन बैंकों को विलय करने के फैसले का विरोध करते हुए ऑल इंडिया बैंक इम्प्लाइज़ एसोसिएशन (एआईबीईए) के महासचिव सीएच वेंकटचलम ने कहा कि इस बात का कोई सबूत नहीं है कि बैंकों का विलय बैंकों को मजबूत करेगा या उन्हें अधिक कुशल बना देगा।

उन्होंने इसके लिए स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया (एसबीआई) का भी उदाहरण दिया। वेंकटचलम ने आगे कहा कि एसबीआई के साथ पांच सहयोगी बैंकों के विलय के बाद कोई चमत्कार नहीं हुआ है.

पहले हुए विलय पर उन्होंने कहा, ‘दूसरी तरफ, इसके परिणामस्वरूप शाखाओं को बंद करना, खराब ऋण में वृद्धि, कर्मचारियों में कमी, व्यापार में कमी आई है| 200 वर्षों में पहली बार एसबीआई नुकसान में गया है।’

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इसके अलावा इस विलय से नौकरियों पर भी खतरा बताया गया है। बैंक श्रमिक का राष्ट्रीय संगठन (एनओबीडब्ल्यू) के उपाध्यक्ष अश्विनी राणा ने आश्चर्य जताते हुए कहा कि विलय का उद्देश्य स्पष्ट नहीं है और इन बैंकों के कर्मचारी प्रभावित होंगे|

यूनियन के महासचिव वसंत बरोट ने कहा, ‘बैंको का एनपीए बढ़ रहा है। बैंकों का विलय करने से देश में बेरोज़गारी बढ़ेगी। बैंक ऑफ़ बड़ौदा एक लाभकारी बैंक हैं। दो बैंकों के विलय से इस बैंक का नाम भी एनपीए लिस्ट में आ जाएगा।’

प्रदर्शनकारियों ने कहा कि केंद्र सरकार नोटबंदी और जीएसटी के फायदे बताने में पूरी तरह से असफल रही अब बैंकों के विलय से अर्थव्यवस्था को सिर्फ नुकसान पहुंचेगा।

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