लगातार सामने आ रहे घोटालों के चलते भारतीय बैंकों की स्तिथि ख़राब होती जा रही है। बैंकों का एनपीए (नॉन प्रॉफिट एसेट्स) बढ़कर 8.40 लाख करोड़ रुपये हो गया है। एनपीए बैंकों का फँसा हुआ वो कर्ज़ होता है जिसे कर्ज़दार दिवालिया हो जाने या जान बूझकर नहीं चुकाते हैं। इस फँसे हुए कर्ज़ से बैंकों के लाभ पर फर्क पड़ता है जिसके चलते उनकी बैलेंस सीट दबाव में आती है।

गौरतलब है कि हाल ही में विजय माल्या और नीरव मोदी से लेकर वीडियोकॉन कंपनी से संबंधित कई बैंक घोटाले सामने आए हैं।

2016 से अब तक बैंक ट्रिब्यूनलों में हज़ारों बैंक धोकाधड़ी के मामले दर्ज हो चुके हैं। बता दें, कि रायटर्स ने आरबीआई से आरटीआई द्वारा मिली जानकारी के आधार पर बताया है कि पिछले पांच सालों में सबसे ज़्यादा बैंकिंग घोटाले हुए हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक, 2012-13 से 2016-17 तक 8,670 बैंक घोटाले के मामले सामने आ चुके हैं। इन मामलों में बैंकों का 612 अरब रुपये का नुकसान हो चुका है।

इस महीने जारी एक रिपोर्ट के अनुसार दिसंबर 2017 में देश के सभी अधिसूचित बैंकों का कुल एनपीए 8.40 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। बैंकों द्वारा दिए हुए कर्ज़ों का ये 10.32% है। सबसे ज़्यादा फंसा हुआ कर्ज़ सरकारी बैंकों का है। वो अब बढ़कर 13.03% हो गया है।

बैंकों का एनपीए बढ़ने से जनता भी प्रभावित होती है। जब किसी बैंक का दिया हुआ कर्ज़ वापस नहीं होता है तब उसके पास पैसे की कमी होती है। इस कारण वो लोगों को कम लोन देना शुरू कर देता है। जब लोगों को लोन नहीं मिलते तो बाज़ार में पैसा नहीं लगता। इस कारण नए उद्योग नहीं खुलते और नई नौकरियां पैदा नहीं होतीं।

ये किसी देश के बैंकों के लिए भयावह स्तिथि है। भारत विश्व के उन पांच देशों में शामिल हो चुका है जहाँ बैंकों के ऊपर सबसे ज़्यादा एनपीए का बोझ है।

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