दलित समाज द्वारा किए गए ‘भारत बंद’ को तमाम राजनीतिक, सामाजिक संगठनों का साथ मिलता दिख रहा है। सोशल मीडिया पर सुबह से ही #BharatBandh ट्रेंड कर रहा है। दिल्ली, पंजाब, बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और ओडिशा में बंद का व्यापक असर देखने को मिल रहा है।
दलित समाज का कहना है न्यायपालिका और सत्ता मिलकर उनके खिलाफ साजिश कर रही है। सड़क पर अपने अधिकारों के लिए आवाज बुलंद करने वाले युवकों को पुलिस पीट रही है। सत्ता के इशारों पर काम करने वाली पुलिस प्रदर्शनकारियों पर जमकर जुल्म ढ़ाह रही है।
न्यूज एजेंसी ANI ने सोशल मीडिया पर एक वीडियो शेयर की है जिसमें यूपी पुलिस प्रदर्शनकारियों को बूरी तरह पीटती नजर आ रही है। वीडियो बीजेपी शासित उत्तर प्रदेश के मीरुत की है। योगी सरकार को इशारों पर पुलिस प्रदर्शन कर रहे दलित युवकों को बेरहमी से पीट रही है।
अभी से कुछ महीने पहले ही करणी सेना ने एक फिल्म के लिए देश को हिंसा के आग में झोक दिया था। कई दिनों तक स्कूलों को बंद करना पड़ा था, कई बसों को आग के हवाले कर दिया गया था, बच्चों पर हमला हुआ था, उस वक्त ये पुलिस महकमा मौन था, क्यों मौन था? क्योंकि सत्ता का आदेश था। और आज सत्ता में बैठे जातिवादी ताकतों ने लाठी चलाने की पूरी आजादी दे रखी है।
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने 20 मार्च को अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम में कुछ बड़े बदलाव किए थे। 30 जनवरी 1990 से अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम जम्मू-कश्मीर को छोड़कर पूरे देश में लागू कर दिया गया था। इस एक्ट के तहत उन तमाम लोगों पर कार्रवाई होती थी जो अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति से जुड़े लोगों को अपमानित करते, सामाजिक बहिष्कार करते, मारपीट, आदि करते है।
प्राप्त जानकारी के मुताबिक, अगर किसी के खिलाफ एससी-एसटी ऐक्ट के तहत केस दर्ज होता है, तो पुलिस उस शख्स को तुरंत गिरफ्तार कर लेती है। इस केस में किसी तरह की अग्रिम जमानत नहीं मिलती है। गिरफ्तारी के बाद जमानत निचली अदालत नहीं दे सकती है, सिर्फ हाई कोर्ट ही जमानत दे सकती है। इसके अलावा किसी शख्स की गिरफ्तारी के 60 दिन के अंदर पुलिस को चार्जशीट दाखिल करनी होती है। चार्जशीट दाखिल होने के बाद पूरे मामले की सुनवाई विशेष अदालत में होती है, जो एससी-एसटी के मामलों की सुनवाई के लिए बनी होती है।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद…
इस एक्ट के तहत दायर मामलों में गिरफ्तारी जरूरी नहीं है। इस एक्ट के तहत दर्ज मामलों में अग्रिम जमानत का प्रावधान नहीं था। नए फैसले के बाद अग्रिम जमानत लेना मुमकिन हो जाएगा।
मौजूदा कानून के तहत दर्ज मामलों में अगर आरोपी सरकारी कर्मचारी या अधिकारी है, तो उसे नियुक्त करने वाले की सहमति के बिना उसकी गिरफ्तारी नहीं होगी।
अगर आरोपित व्यक्ति सरकारी कर्मचारी नहीं है, तो उसकी गिरफ्तारी के लिए एसएसपी स्तर के अधिकारी की मंजूरी चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि इस धारा के तहत कोई शिकायत आने पर सात दिनों के अंदर डीएसपी द्वारा शुरुआती जांच कर ली जाए ताकि कोई निर्दोष व्यक्ति न फंसे।