उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा में जब आपसी सहमति से समर्थन की बात हुई तो प्रदेश की राजनीति गर्म हो गई। सोशल मीडिया से सड़क तक और कांग्रेस दफ्तर से लेकर बीजेपी नेताओं तक में हडकंप मच गया। आखिर ऐसा कैसे हुआ कि ‘मायावती’ जिन्होंने 23 साल पहले जिस समाजवादी पार्टी का साथ छोड़ा, आज उनकी मदद करने को तैयार हैं।
सबसे ज्यादा खलबली मची भारतीय जनता पार्टी के लोगों में, मुख्यमंत्री से लेकर पार्टी प्रवक्ता तक सब एक भाषा में दोनों ही दलों की बुराई करने पर उतारू हो गए।राजनीति में गिरती भाषाई गरिमा को देश पिछले 4 सालों से देख ही रहा है।
बीजेपी के अनुभवी से अनुभवी नेताओं ने कोई कमी नहीं छोड़ी। दोनों दल के आपसी समझौते पर अनाप-शनाप बयानबाज़ी करके उस हवा को बरकरार रखा जाये जिस पर बीजेपी अब तक सवार है।
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष डा. महेन्द्र नाथ पाण्डेय ने सपा और बसपा की दोस्ती पर बयान देते हुए कहा कि समाजवादी पार्टी औैर बहुजन समाज पार्टी का गठजोड़ अवसरवाद, स्वार्थ और जनविरोध की रेत पर बना है जो प्रधानमंत्री माननीय नरेंद्र मोदी जी की विकास की सुनामी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की कार्यकुशलता के आगे कहीं नहीं टिकेगा।
वहीं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि तूफान देखकर सांप-छछूंदर जैसे जानी दुश्मनों का एक कश्ती में सवार होना अचरज की बात नही है। ये उस प्रदेश के मुख्यमंत्री की भाषा है जिसे संस्कृति का प्रदेश का जाता है।
प्रदेश के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या ने कहा कि पीएम मोदी को हराने के मकसद से मायावती व अखिलेश का मिलन हुआ है।
इन सबसे आगे निकले बीजेपी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकान्त वाजपयी जिन्होंने सपा और बसपा के साथ आने पर कहा कि बीजेपी की बाढ़ में दुश्मन भी एक हो गया है। यही दोनों ऐसे ही जैसे सांप(सपा) और नेवला (बसपा) है।
बीजेपी को ये बात समझनी चाहिए कि इस तरह से किसी भी राजनैतिक दल पर ऐसी अमर्यादित भाषा का उपयोग करने से बीजेपी की ही छवि ख़राब होगी क्योकिं वो इस वक़्त राज्य और केंद्र की सत्ता में है।