प्रधानमंत्री मोदी ने सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के उस विवादस्पद फैसले को पलट दिया जिसमें फेक न्यूज़ को लेकर एक गाइडलाइन जारी की थी। इसमें कहा गया था कि अब अगर कोई पत्रकार फर्ज़ी खबरे फैलाता हुए पाया गया तो उसकी मान्यता रद्द कर दी जाएगी।

पीएमओ ने इस फैसले को पलटते हुए कहा कि फर्ज़ी खबरों पर फैसला लेने की ज़िम्मेदारी प्रेस काउंसिल ऑफ़ इंडिया की होगी। लेकिन क्या प्रेस काउंसिल सरकार के हस्तक्षेप से पूरी तरफ मुक्त है?

प्रेस काउंसिल वैसे तो स्वतंत्र संस्था है लेकिन इसकी नियुक्तियों में सरकार का हस्तक्षेप रहता है। 16 मार्च को ही सरकार ने प्रेस काउंसिल में नियुक्तियां की हैं।

इसमें भाजपा के लोकसभा सदस्य प्रताप सिम्हा की भी नियुक्ति सदस्य के तौर पर की गई है।

प्रताप सिम्हा ने हाल ही में फेक न्यूज़ को फ़ैलाने के आरोप में गिरफ्तार हुए महेश विक्रम हेगड़े की गिरफ़्तारी का विरोध किया था।

महेश विक्रम हेगड़े विवादित न्यूज़ वेबसाइट postcard के संपादक हैं। इन्होने ट्वीट कर कहा था कि एक जैन भिक्षु को किसी मुस्लिम व्यक्ति ने हमला कर घायल कर दिया है। जबकि भिक्षु एक सड़क दुर्घटना में घायल हुए थे। इसके बाद कर्नाटक पुलिस ने महेश को गिरफ्तार कर लिया था।

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