गुजरात में किसान और पर्यावरण कार्यकर्ता मोदी सरकार की मुंबई से अहमदाबाद जाने वाली बुलेट ट्रेन का विरोध कर रहे हैं। ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ की खबर के अनुसार, किसानों का कहना है कि सरकार के पास ट्रेन के लिए ज़मीन अधिग्रहण और पर्यावरण प्रभाव पर नीति नहीं है। इसलिए काम के नाम पर खानापूर्ति हो रही है।

हाल ही में राष्ट्रीय उच्च गति रेल निगम (एनएचएसआरसी) ने बुलेट ट्रेन परियोजना का पर्यावरण और किसानी पर प्रभाव का अंदाज़ा लगाने के लिए मीटिंग की थी। इसके बाद ही सोमवार को एनएचएसआरसी दूसरी मीटिंग के लिए कहा है। किसान और पर्यावरण कार्यकर्ता इसका विरोध कर रह हैं।

उनका कहना है कि एनएचएसआरसी के पास परियोजना के प्रभाव को लेकर कोई रिपोर्ट नहीं है। न ही वो हमें मीटिंग के लिए किसी भी तरह की तैयारी का समय दे रहे हैं।

पर्यावरण सुरक्षा समिति के कार्यकर्ता कृष्णकांत ने कहा कि एनएचएसआरसी जल्दी जल्दी मीटिंग कर बस ये रिकॉर्ड बना लेना चाहती है कि उसने काम किया है। जबकि असल में कुछ काम हो नहीं रहा है। वडोदरा में ही मीटिंग में भी एनएचएसआरसी ने परियोजना के पर्यावरण प्रभाव को लेकर कोई रिपोर्ट पेश नहीं की।

किसानों का आरोप है कि एनएचएसआरसी ने उनसे ज़मीन अधिग्रहण के लिए ज़मीन की कीमत को लेकर भी बात नहीं की। अधिकारीयों ने सीधा कहा कि किसानों को ज़िला कलेक्टरों से मुआवज़ा मिल जाएगा। किसानों का कहना है कि उनकी ज़मीन की कीमत सरकार द्वारा लगाई जा रही कीमत से ज़्यादा है। रमेश पटेल नाम के एक किसान ने कहा कि क्यों सभी परियोजनाओं के लिए सबसे ज़्यादा खामियाजा किसानों को ही भरना पड़ता है।

रविवार को गुजरात और महाराष्ट्र के किसानों ने बुलेट ट्रेन परियोजना का विरोध करने के लिए बैठक की। ये बैठक खेदुत समाज (गुजरात) के बैनर तले हुई। इस परियोजना से 192 गुजरात के और 120 महाराष्ट्र के गाँव प्रभावित होंगे।

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