आरक्षण पर एक बार फिर बहस शुरू हो चुकी है। मीडिया चैनलों ने इसे लेकर सवाल भी करने शुरू कर दिए है कि क्या आरक्षण को ख़त्म करने का वक़्त आ गया। इसके बाद कई आरक्षण विरोधी मानसिकता अब अपना असल चेहरा दिखाने लगी है। ऐसा ही दिखने को मिला सोशल मीडिया पर जहां एंकर चित्रा त्रिपाठी ने रामविलास पासवान के बयान पर आरक्षण की समीक्षा करने की बात कही है।
दरअसल मोदी सरकार में मंत्री रामविलास पासवान संघ प्रमुख के बयान पर तीन ट्वीट किए। जिसमें उन्होंने बचते बचाता आरक्षण पर बहस और समीक्षा ना करने की बात कह रहे थे। पासवान ने अपने पहले ट्वीट में लिखा RSS के सरसंघचालक श्री मोहन भागवत जी के आरक्षण संबंधी बयान को लेकर विपक्ष लोगों के मन में पुनः भ्रम पैदा करने की कोशिश कर रहा है, जो बिल्कुल निराधार है।
उन्होंने कहा कि आरक्षण संवैधानिक अधिकार है और यह अधिकार महात्मा गांधी और बाबा साहेब अंबेडकर के बीच हुए पूना पैक्ट का नतीजा है। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने बार बार कहा है कि दुनिया की कोई ताकत आरक्षण को खत्म नहीं कर सकती है।
प्रियंका गांधी बोलीं- आरक्षण पर RSS के मंसूबे खतरनाक हैं, क्या आप इसे खत्म होने देंगे ?
पासवान ने कहा कि आरक्षण पहले अनुसूचित जाति, जन जाति और पिछड़ी जातियों के लिए ही था। अब नरेंद्र मोदी जी की सरकार ने ऊँची जाति के गरीबों को भी आरक्षण देने का काम किया है। इसलिए आरक्षण पर अब कोई विवाद नहीं है और न ही इस पर विचार करने की कोई आवश्यकता है।
उन्होंने आगे कहा कि आरक्षण पर किसी तरह का कोई विचार करने की कोई आवश्यकता नहीं है। विपक्ष ने लोकसभा के चुनाव में भी आरक्षण को मुद्दा बनाने की कोशिश की थी लेकिन उसका परिणाम उल्टा निकला।
अब इसपर ज्ञान देने के एंकर चित्रा त्रिपाठी कूद पड़ी उन्होंने सीधे सीधे संघ प्रमुख की भाषा में कह दिया कि आरक्षण की समीक्षा होनी चाहिए।
पासवान को जवाब देते हुए चित्रा त्रिपाठी ने लिखा आरक्षण पर विचार हो या ना हो,मगर चर्चा भी ना हो? ये तो गलत है। आरक्षण पर चर्चा कर समीक्षा होनी चाहिये कि जिस मकसद से आरक्षण दिया गया उसमें कितनी कामयाबी मिली है? अगर नहीं मिली है तो कौन लोग जिम्मेदार हैं? इसमें सामाजिक प्रतिष्ठा और आर्थिक स्थिति का खाका भी होना चाहिये।
आरक्षण पर विचार हो या ना हो,मगर चर्चा भी ना हो? ये तो गलत है..आरक्षण पर चर्चा कर समीक्षा होनी चाहिये कि जिस मकसद से आरक्षण दिया गया उसमें कितनी कामयाबी मिली है? अगर नहीं मिली है तो कौन लोग जिम्मेदार हैं? इसमें सामाजिक प्रतिष्ठा और आर्थिक स्थिति का खाका भी होना चाहिये.@irvpaswan https://t.co/bRDDlQz1vb
— Chitra Tripathi (@chitraaum) August 20, 2019
उन्होंने आगे लिखा आरक्षण खत्म मत कीजिये,मगर देश की प्रतिभा के साथ खिलवाड़ भी मत करें.जो गरीब हैं,हर तरह की छूआछूत का शिकार वही है-वो हिंदू-मुसलमान कोई भी हो सकता है.बाबा साहब ने आरक्षण की समय सीमा निर्धारित की थी.उन्हें पता नहीं होगा कि राजनीति की बलि चढ़ने लगेगा उनका फैसला।
आरक्षण खत्म मत कीजिये,मगर देश की प्रतिभा के साथ खिलवाड़ भी मत करें.जो गरीब हैं,हर तरह की छूआछूत का शिकार वही है-वो हिंदू-मुसलमान कोई भी हो सकता है.बाबा साहब ने आरक्षण की समय सीमा निर्धारित की थी.उन्हें पता नहीं होगा कि राजनीति की बलि चढ़ने लगेगा उनका फैसला @irvpaswan @RSSorg https://t.co/sOLGJPCT0J
— Chitra Tripathi (@chitraaum) August 20, 2019
ये बयान उसी सोच से पैदा होता है जिसे आरक्षण विरोधी कहा जाता है। जो ये कहता है कि आरक्षण की समीक्षा होनी चाहिए। जिस क्षेत्र में खुद एंकर चित्रा त्रिपाठी है वहां दलितों पिछड़ों का क्या हाल है? उच्च पदों कितने दलित और पिछड़े पत्रिकारिता के क्षेत्र में क्या भागीदारी है? इसका जवाब सिर्फ एक कि उच्च जातियों के लोगों का वर्चस्व 90 फीसद से ज्यादा है।
मंदिरों में आरक्षण लागू करके दिखाए RSS जहां दलित भी पुजारी बन सकें, फिर बहस के लिए तैयार हैं हम
क्या एंकर चित्रा त्रिपाठी ये बता सकती हैं कि मीडिया में, जहां संवैधानिक आरक्षण लागू नहीं होता है, उस क्षेत्र में दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों की क्या भागदारी है ? और भागीदारी ना देने के लिए कौन ज़िम्मेदार है? यहां एंकर से लेकर एडिटर के पदों तक कौन बैठा हुआ है? वो सिर्फ सवर्ण क्यों होता है ?
अगर इसका जवाब मिल सकता है तो आरक्षण की समीक्षा पर बहस हो सकती है। मगर जहां मंदिरों के पुजारी से लेकर न्यूज़रूम के एडिटर बनाए जाने में सवर्णों का अघोषित आरक्षण है, वहां वंचितों के आरक्षण की समीक्षा की बात करना भी सिर्फ उसे ख़त्म करने की पहल या चाल ही समझी जाएगी।