मीडिया पर ही मीडिया की ओर से स्टिंग ऑपरेशन किया जाना इस बात की ओर स्पष्ट संकेत करता है कि लोगों के उपर ” मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ ” मामने का भरोसा नहीं रहा। वो भी किसी दूसरे कारोबार की तरह किसी भी स्तर पर जाकर सौदेबाजी कर सकता है, चाहे इसके लिए उसे लोकतंत्र के खिलाफ ही क्यों न जाना पड़े ?

कोबरा पोस्ट ने मीडिया पर दंगे फैलाने के लिए खबरों की सौदेबाजी से जुड़ा स्टिंग करके साहस का परिचय तो दिया ही है, इसके साथ ही उस मॉडल की तरफ इशारा भी किया है कि अब पैसा परंपरागत कारोबारी मीडिया पर खबरें करके, उन पर स्टिंग करके भी बिजनेस है। आखिर फेक न्यूज के बरक्स ऑल्टरनेटिव न्यूज मॉडल भी तो यही कहता है।

अब होगा ये कि धीरे-धीरे ये सारे कारोबारी संस्थान एक-एक करके ऐसी ब्रांड लांच करेंगे जो लोगों के बीच भरोसा पैदा करेंगे कि सच्ची खबर यहां है। इसके लिए वो संभव है अपने मदर ब्रांड से भी असहमत होते नजर आएं जैसा कि लल्लनटॉप जैसी वेबसाइट की कलाकारी से हम सब अवगत ही है।

इधर साधन और पूंजी के अभाव में ऐसे मंच या तो दम तोड़ देंगे या नए धंधेबाज के तौर पर अपने पैर जमा लेंगे। सरोकार के नाम पर तीन-पांच की खबरें हम आए दिन पढ़ते ही आए हैं।

याद कीजिए टीवी सीरियल की दुनिया। जब सास-बहू सीरियल से लोग चट गए और एकता कपूर की सरेआम आलोचना होने लगी तो उसी बालाजी टेलिफिल्म्स ने एक के बाद सामाजिक मुद्दे से जुडे सीरियल लांच कर दिए।

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