लोकतंत्र जिन चार स्‍तंभों पर टिका है उसे विधायिका, कार्यपालिका, न्‍यायपालिका और मीडिया के नाम से जाना जाता है। एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिए जरूरी है कि ये स्‍तंभ अपना काम पूरी जिम्मेदारी व निष्ठा से करें। लोकतंत्र की सफलता और सतता के लिए इन स्तंभों का मजबूत रहना जरूरी है।

लेकिन भारत में एक अजीब स्थिति पैदा हो गयी है। यहां चौथा स्तंभ लगातार तीसरे स्तंभ को कमजोर करने की कोशिश कर रहा है। कुछ मीडिया संस्थान न सिर्फ न्‍यायपालिका की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े कर रहे हैं बल्कि उसका अपमान भी कर रहे हैं।

दक्षिणपंथी राजनीतिक पार्टी के प्रभाव वाले मीडिया संस्थान चाहते हैं कि न्यायपालिका उनके मन मुतबिक फैसले करे। लेकिन ये संभव नहीं है। ऐसे दक्षिणपंथी मीडिया संस्थानों को समझना चाहिए कि भारत की न्यायपालिका भारतीय संविधान से चलती सत्ता की दलाली से नहीं।

गोदी मीडिया के नाम से कुख्यात हो चुके ऐसे संस्थान सत्ताधारी बीजेपी की गुलामी कर रहे हैं। ये बात कोबरा पोस्ट की एक स्टिंग ऑपरेशन साबित से भी हो चुका है। मामला चाहे सबरीमाला मंदिर का हो, या अयोध्या विवाद का, गोदी मीडिया चाहती है कि फैसला सिर्फ हिंदू मान्यताओं को ध्यान में रखकर हो। क्योंकि बीजेपी हिंदुत्व की राजनीति करती है।

गोदी मीडिया बीजेपी की गुलामी में इतनी अंधी हो चुकी है कि उसे न महिलओं का अधिकार नजर आ रहा है, न ही देश की धर्मनिरपेक्षता। अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने 29 अक्टूबर को सुनावाई की थी। 3 मिनट की सुनवाई में मामले को अगले तीन महीने के लिए टाल दिया गया। अब अगली सुनवाई जनवरी में होगी।

चीफ जस्टिस रंजन गोगोई समेत जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस के. एम जोसफ की पीठ ने कहा कि ये मामला अर्जेंट सुनवाई के तहत नहीं सुना जा सकता है।

अब मीडिया के कार सेवक पत्रकारों को तीन महीना बर्दाश्त नहीं हो रहा है। दूसरे शब्दों में कहे तो ये भगवा पत्रकार सुप्रीम कोर्ट पर भरोसा ही नहीं करना चाहते। ये चाहते हैं कि आज के आज राम मंदिर बन जाए। और यही वजह है कि गोदी मीडिया के कार सेवक पत्रकार हर रोज जुबानी राम मंदिर बना रहे हैं।

29 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या विवाद मामले की सुनावाई हुई। 29 अक्टूबर से अबतक कई देश में कई जरूरी मुद्दें उभरे लेकिन गोदी मीडिया की सूई राम मंदिर पर ही अटकी हुई है। देखिए…

28 अक्टूबर-

रोहित सरदाना

‘अबकी बार राम मंदिर तैयार’

29 अक्टूबर-

अमीश देवगन

‘तारीख पर तारीख में फंसे श्री राम!’

अंजना ओम कश्यप

सबरीमाला, ट्रिपल तलाक, दही हांडी, दिवाली के पटाखे…इन सबपर कोर्ट की तत्परता के बीच राम मंदिर मुद्दे को टालकर पॉलिटिक्स को थोड़ा और ऑक्सीजन मिल गया । #AyodhyaRamMandir

‘हे राम तारीख पर तारीख’

रोहित सरदाना

‘रामलला कब आएंगे, मंदिर कब बनाएंगे’

31 अक्टूबर-

रोहित सरदाना

‘न्याय में देर रामजी से अंधेर!’

1 नवंबर-

अमीश देवगन

राम लला पर बिल लाएँगे मन्दिर वहीं बनाएँगे?
राम मन्दिर का ‘काउंटडाउन’?

रोहित सरदाना

अब संसद से जय श्री राम?
संसद में राम मंदिर के लिए बिल आएगा तो कौन-कौन बिलबिलाएगा?

2 नवंबर-

अमीश देवगन

‘आस्था नहीं इंसाफ़ ज़रूरी’
अब मन्दिर पर ‘आन्दोलन अध्याय’ ?

रोहित सरदाना-

राफ़ेल या राम, कौन बनाएगा काम?

कोर्ट की सुनावाई के बाद अभी तक सरकार की तरफ से राम मंदिर पर बिल लाने की बात नहीं कही गई है। लेकिन कार सेवक पत्रकार हर रोज अपने प्रोग्राम के माध्यम से अध्यादेश ला रहे हैं।

इसी तरह की कवरेज लगातार होती रही है. 3, 4 और 5 नवंबर को भी मीडिया के लिए राम मंदिर ही सबसे बड़ा मुद्दा रहा .

6 नवंबर

दीपावाली से ठीक एक दिन पहले तो कारसेवक पत्रकारों को अपने एजेंडा का बहाना मिल गया, त्यौहार के बहाने राम मंदिर के सवाल के साथ भड़काऊ सन्देश देना शुरू कर दिया गया ।

ज़ी न्यूज़ ने तो मानो कसम खा ली कि आज ही मंदिर बनवाकर दम लेगा।

अपना इरादा जाहिर करते हुए मीडिया वाले बता रहे हैं कि मंदिर का संबंध 2019 चुनाव से है।

 

धमकी भरे लहजे में डाला गया ये पोस्टर सबकुछ बताता है।

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