पड़ोसी मुल्क श्रीलंका में आपातकाल लग चुका है। श्रीलंका अपने बुरे दौर से गुजर रहा है। अपनी आजादी की 70वीं वर्षगांठ मनाने की जगह श्रीलंका की हिंसा की आग में झुलस रहा है। बता दें कि श्रीलंका को चार फरवरी 1948 को आज़ाद हुआ था।

आजादी के मौक पर श्रीलंका के कैंडी जिले में बौद्ध और मुस्लिमों के बीच सांप्रदायिक हिंसा शुरू हुई। ये हिंसा देखते ही देखते आपातकाल में तब्दील हो गई। 10 दिन के लिए इमरजेंसी लगाए जाने के बाद भी हिंसा की घटनाओं में कोई कमी नहीं आयी है।

इस तनाव को खत्म करने के लिए श्रीलंका के पूर्व क्रिकेटर कुमार संगकारा ने सौहार्द का संदेश दिया है। संगकारा लगातार सोशल मीडिया के माध्यम से शांति बनाए रखने की अपील कर रहे हैं।

संगकारा ने कहा है कि, “मेरा ये संदेश अपने श्रीलंका के भाई बहनों के लिए है। क्‍या हमने अपने अतीत से कुछ नहीं सीखा है। क्‍या हमने बुनियादी सौहार्द और प्‍यार को भी खो दिया है। हम ये नहीं समझ रहे हैं कि कैसे बिना सोंचे विचारे किए गए काम हमारे भविष्‍य को खतरे में डाल रहे हैं।”

कुमार संगकारा ने लोगों से शांति बनाए रखने की अपील करते हुए कहा, “अपने पड़ोसियों की सुरक्षा की जिम्‍मेदारी हमारी भी है। ये हमारी जिम्‍मेदारी है कि हम अपने भाईयों और बहनों की रक्षा करें। ये हमारी जिम्‍मेदारी है कि श्रीलंका में रहने वाला हर व्‍यक्ति सुरक्षित रहे और उसे सभी लोग स्‍वीकार करें। हमे बाकी लोगों के लिए अपने दिल और दिमाग को खुला रखना होगा। हमे सांप्रदायिक माहौल और तोड़फोड़ को यहीं खत्‍म करना होगा।”

संगकारा ने कहा, “श्रीलंका में धर्म और जाति के आधार पर किसी को दबाया नहीं जा सकता है।”

जब भी श्रीलंका की क्रिकेट का जिक्र होता है महेला जयवर्धने को जरूर याद किया जाता है। जयवर्धने ने श्रीलंका में हो रही हिंसा पर दुख व्यक्त किया है और लोगों से सौहार्द बनाए रखने की अपील की है।

उन्होंने ट्विट किया है कि “हाल में हुई हिंसा कि मैं कड़ाई से निंदा करता हूं, इस हिंसा में शामिल हुए सभी मुजरिमों को सजा मिलनी चाहिए चाहे वह किसी भी धर्म या जाति के हों। उन्होंने कहा मैं गृह युद्ध में बड़ा हुआ जो 25 साल तक चली और मैं नहीं चाहता कि अगली पीढ़ी भी उसी दौर से दोबारा गुजरे।”

जब देश में तनाव है तो, श्रीलंका के क्रिकेटर वहां की जनता के बीच सौहार्द का संदेश दे रहे हैं। कुमार संगकारा, महेला जयवर्धने समेत तमाम अमन पसंद लोगों को इस बात पर बहस नहीं करना कि कौन मुस्लिम है और कौन बौद्ध। उन्हें बस अपने देश में शांति चाहिए। वो किसी से भी जाति, धर्म, गरीबी और राजनीतिक महत्वकांक्षा के आधार पर भेदभाव नहीं कर रहें।

श्रीलंका में बौद्धों की संख्या अधिक है और मुस्लिम समुदाय अल्पसंख्यक है। मुसलमानों के साथ बहुसंख्यक समुदाय हिंसा कर रहा है और कुमार संगकारा, महेला जयवर्धने जैसे लोग इसका विरोध कर रहे हैं।

भारत में इसका उल्टा देखने को मिला है। भारत में तमाम खिलाड़ी और पब्लिक फिगर ज्यादातर मुद्दों पर सरकार या बहुसंख्यक समुदाय के साथ खड़े हो जाते हैं।

सहवाग जैसे खिलाड़ी जिन्हें मैदान में खूब पसंद किया जाता था, अब आए दिन साम्प्रदायिक बयान देते रहते हैं। सहवाग ने सोशल मीडिया पर कई बार ऐसी चीजों को लिखा है जिससे साफ पता चलता है कि वो मौजूदा राजनीति में बहुत प्रभावित हैं।
सहवाग जैसे लोग हिंसा और भेदभाव के खिलाफ भी जाति समुदाय देखकर खड़े होते हैं। जाहिर सी बात है इसके पीछे उनकी कोई राजनीतिक महत्वकांक्षा होगी। अभी कुछ दिनों पहले सहवाग ने एक विवादित ट्वीट किया था जिसके लिए उन्होंने माफी भी मांगी थी।

केरल के रहने वाले 27 साल के मधु नाम के आदिवासी युवक को स्थानीय लोगों ने चोरी के आरोप में हाथ-पैर बांधकर खूब पीटा। इसके बाद उसकी मौत हो गई थी। इस घटना की निंदा करने के लिए क्रिकेटर वीरेंदर सहवाग ने शनिवार (24 फरवरी) को ट्वीट किया, लेकिन वह लोगों को पसंद नहीं आ आया। लोगों का कहना था कि सहवाग इस मामले को धार्मिक रंग देने की कोशिश कर रहे हैं।

सहवाह ने ट्विट करते हुए लिखा था कि ‘मधु ने सिर्फ एक किलो चावल चुराया था। इसपर उबेद, हुसैन और अब्दुल की भीड़ ने उस गरीब आदिवासी को मार डाला। यह एक सभ्य समाज के लिए कलंक की तरह है। मुझे इस बात पर शर्म आती है कि ऐसा होने पर भी किसी को कोई फर्क नहीं पड़ रहा।’

सहवाग के इस ट्वीट में एक ही समुदाय के तीन ओरोपियों का नाम लिखा गया है जबकि केरल पुलिस ने इस आरोप में जिन लोगों को नामजद किया है जिसमें अन्य संप्रदायों के लोग भी शामिल हैं।

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