राफेल मामले में फ़्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद के बयान के बाद मोदी सरकार सवालों के घेरे में है। लेकिन सवाल सरकार की तरफ उठे हैं तो जनता की आँखें लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ की तरफ हैं कि मीडिया इस मामले को कितनी संजीदगी के साथ जगह दे रही है।

2014 के बाद जिस तरह से कई मीडिया घरानों ने सरकार से सवाल करना बंद कर दिया है उसके बाद देश में इस तरह की मीडिया को ‘गोदी मीडिया’ कहा जाने लगा है। आज हम ये जानेगें कि प्रिंट मीडिया यानि कि देश के प्रमुख अख़बारों ने राफेल मामले में आए फ़्रांस के पूर्व राष्ट्रपति के बयान को कितनी संजीदगी के साथ कहा जगह दी है।

बता दें, कि अभी तक मोदी सरकार का कहना था कि उसने राफेल विमान समझौते में अनिल अम्बानी की कंपनी ‘रिलायंस डिफेन्स लिमिटेड’ का नाम फ़्रांस को नहीं दिया था बल्कि फ़्रांस की कंपनी ‘डासौल्ट’ ने खुद उसे अपना पार्टनर चुना था।

लेकिन इस समझौते के समय फ़्रांस के तत्कालीन राष्ट्रपति फ्रांसा ओलांदे ने फ़्रांस के न्यूज़ संगठन ‘मीडियापार्ट’ के साथ इंटरव्यू में कहा है कि फ़्रांस ने रिलायंस को खुद नहीं चुना था बल्कि भारत सरकार ने रिलायंस कंपनी को पार्टनर बनाने का प्रस्ताव दिया था।

हिंदी अखबार

हिंदी अखबारों पर पिछले कुछ समय से लगातार सवाल उठ रहे हैं। उन पर आरोप है कि वो सरकार की आलोचना करने वाली ख़बरों को जगह नहीं दे रहे हैं और ‘बागों में बाहर’ छाप रहे हैं। लेकिन इस बार हिंदी के ज़्यादातर प्रमुख अख़बारों ने हिम्मत दिखाते हुए इस खबर को पहले पन्ने यानि कि फ्रंट पेज पर जगह दी है।

जिन अख़बारों ने इस खबर को पहले पन्ने पर जगह दी है उनमें हिन्दुतान, जनसत्ता, पंजाब केसरी, नवभारत टाइम्स का नाम शामिल है।

अगर खबर को महत्वता पर बात की जाए तो जनसत्ता ने इस खबर को नीचे की तरफ कम शब्दों में छापा है। जबकि हिंदुस्तान ने शब्दों की कंजूसी ना करते हुए खबर को पहले पन्ने के बीच में जगह दी है। नवभारत टाइम्स ने इस खबर को फ्रंट पेज के सबसे ऊपर जगह दी है। तो पंजाब केसरी ने इसे नीचे की ओर छापा है।

वहीं, दैनिक जागरण ने इस खबर को पहले पन्ने पर जगह ना देते हुए इसे 11 पन्ने पर छापा है। लेकिन उन्होंने पहले पन्ने पर फ़्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद की तस्वीर लगाकर शीर्षक दिया है कि “भारत सरकार ने बनाया था राफेल में रिलायंस को साझेदार: ओलांद।”

गौरतलब है कि दैनिक जागरण मोदी सरकार के हित में खबरें छापने के लिए विवादों में घिरा रहा है। इस से पहले अखबार की बदनामी तब हुई थी जब कठुआ बलात्कार मामले में अख़बार ने छापा था कि आठ साल की बच्ची का बलात्कार मंदिर में नहीं हुआ बल्कि झूठ बोला जा रहा है। ये खबर बाद में झूठ निकली और लोगों ने दैनिक जागरण अख़बार के पन्नों को जलाकर अपना गुस्सा दर्ज कराया।

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अब बात अमर उजाला की। अमर उजाला ने दैनिक जागरण को भी पीछे छोड़ते हुए इस खबर से संबंधित शीर्षक भी पहले पन्ने पर नहीं छापा है। अमर उजाला देश के प्रमुख अख़बारों से एक है। और देश का सबसे ज़्यादा बिकने वाला तीसरा अख़बार है। उसके बावजूद ये रवैय्या बताता है कि वो पत्रकारिता और अपने पाठकों को कहा लेकर जा रहा है।

अंग्रेज़ी अखबार

अंग्रेज़ी के लगभग सभी प्रमुख अख़बारों ने इस खबर को अपने पहले पन्ने पर जगह दी है। द इंडियन एक्सप्रेस, द हिन्दू, हिंदुस्तान टाइम्स, टाइम्स ऑफ़ इंडिया जैसे प्रमुख अख़बारों ने इस खबर को फ्रंट पेज पर छापा है। इन सभी अंग्रेज़ी अख़बारों ने पहले पन्ने के सबसे ऊपर की तरफ इस खबर को छापा है। इस से खबर को कितना महत्व दिया जा रहा है इस बात का पता चलता है।

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